Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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जैन साहित्य में क्षेत्र-गणित
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'त्रिलोकसार' में 7 का मान (16/9) भी मिलता है।४१ उसमें लिखा है-“यदि किसी वृत्त की त्रिज्या हो और वह वृत्त a भुजा वाले वर्ग के बराबर हो तोra होता है।" अतः =(16/9) क्षेत्रफल सम्बन्ध सूत्र
'तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य' में वृत्त के क्षेत्रफल के लिये निम्न मूत्र मिलता है-४२ वृत्त का क्षेत्रफल=1/4 परिधि व्यास 'तिलोयपण्णत्ति' में क्षेत्रफल सम्बन्धी निम्न सूत्र मिलते हैं-- समलम्ब चतुर्भज का क्षेत्रफल ४३ == मुख भूमि - समान्तर रेखाओं के बीच की दूरी | वृत्त का क्षेत्रफल ४४ =परिधि x व्यास
2
वलय के आकार की आकृति का क्षेत्रफल ४५ =/10
(बाहरी व्यास)2 (भीतरी ब्यास)
di
-
चित्र ४६
धनुषाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल ४६ ==v x वाण - जीवा यांखाकार आकृति का क्षेत्रफल = [(विस्तार)-(मुख) + (मुख)]x2
शंखाकार आकृति का क्षेत्रफल ४७ =|
चित्र ५०
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आचार्गप्रवर श्रीआनन्द
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आचार्यप्रवर अभी श्रीआनन्दप्रसन्न
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