Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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आचार्यप्रवचन चापाप्रवन अभिनत श्राआनन्दमश्रीआनन्दग्रन्थ
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इतिहास और संस्कृति
इसी तरह भगवती सूत्र सम्वत् १२३१ लिपिकर्ता हाणचन्द्र । व्यवहार सूत्र सम्वत् १२३६ लिपिकर्ता जिनबंधुर । महावीर चरित्र गुणचन्द्रसूरि सम्वत् १२४२ ।
भवभावनाप्रकरण-मलधारि हेमचन्द्रसूरि सम्वत् १२६० की भी प्राचीनतम प्रतियाँ इसी भण्डार में संग्रहीत हैं। ताड़पत्र के समान कागज पर उपलब्ध होने वाले ग्रन्थों में भी इन भण्डारों में प्राचीनतम पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध होती हैं, जिनका संरक्षण अत्यधिक सावधानी पूर्वक किया गया है । नये मन्दिरों में स्थानान्तरित होने पर भी उनको सम्हाल कर रखा गया तथा दीमक, सीलन आदि में बचाया गया। इस हष्टि से मध्य युग में होने वाले भट्टारकों का सर्वाधिक योगदान रहा।
जयपुर के दि० जैन तेरह पंथी बड़ा मन्दिर के शास्त्र भण्डार में समयसार की संवत १३२६ की पाण्डुलिपि है जो देहली में गयासुद्दीन बलवन के शासन काल में लिखी गयी थी। योगिनीपुर जो देहली का पुराना नाम था उसमें इसकी प्रतिलिपि की गयी थी।
सन् १३३४ में लिखित महाकवि पुष्पदन्त के महापुराण के द्वितीय भाग उत्तर पुराण की एक पाण्डुलिपि आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर में संग्रहीत है। यह पाण्डुलिपि भी योगिनीपुर में मोहम्मद साह तुगलत के शासन काल में लिखी गयी थी । इसकी प्रशस्ति निम्न प्रकार है___संवत्सरे स्मिन् श्री विक्रमादित्य गताबदाः सम्वत् १३६१ वर्षे ज्येष्ठ बुदि ६ गुरुवासरे अधेह श्री योगिनीपुरे समस्त राजावलि शिरोमुकट माणिक्य खचित नखरश्मौ सुरत्राण श्री मुहम्मद सहि नाम्नी महीं विभ्रति सति अस्मिन राज्ये योगिनीपुरस्थिता ...... ।
यहाँ एक बात और विशेष ध्यान देने की है और वह यह है कि जैनाचार्यों एवं श्रावकों ने अपने शास्त्र भण्डारों में ग्रन्थों की सुरक्षा में जरा भी भेदभाव नहीं रखा । जिस प्रकार उन्होंने जैन ग्रन्थो की सुरक्षा एवं उनका संकलन किया उसी प्रकार जैनेतर ग्रन्थों की सुरक्षा एवं संकलन पर भी विशेष जोर दिया।
घोर परिश्रम करके जैनेतर ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ या तो स्वयं ने की अथवा अन्य विद्वानों से उनकी प्रतिलिपि करवायीं । आज बहत से ऐसे ग्रन्थ हैं जिनकी केवल जैन शास्त्र भण्डारों में ही पाण्डलिपियाँ मिलती हैं। इस दृष्टि से आमेर, जयपुर, नागौर, बीकानेर, जैसलमेर, कोटा, बूंदी एवं अजमेर के जैन शास्त्र भण्डारों का अत्यधिक महत्व है। जैन विद्वानों ने जैनेतर ग्रन्थों की सुरक्षा ही नहीं की किन्तु उन कृतियाँ, टीका एवं भाष्य भी लिखे । उन्होंने उनकी हिन्दो में टीकायें लिखीं और उनके प्रचार । प्रसार में अत्यधिक योग दिया। राजस्थान के इन शास्त्र भण्डारों में काव्य, कथा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित विषयों पर सैकड़ों रचनायें उपलब्ध होती हैं । यही नहीं स्मति, उपनिषद एवं संहिताओं का भी भण्डारों में संग्रह मिलता है । जयपुर के पाटौदी के मन्दिर में ५०० ऐसे ही ग्रन्थों का संग्रह किया हुआ उपलब्ध है।
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१. सम्वत १३२६ चैत्र बुदी दसम्यां बुधवासरे अधेह योगिनीपुरे समस्त राजावलि सयालंकृत श्री
गयासुद्दीन राज्ये अत्रस्थित अग्रोतक परमश्रावक जिनचरनकमल ।
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