Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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ऋषि सम्प्रदाय के पाँच सौ वर्ष
२२३
Rial
४९।
गुजरात में धर्म प्रचार करते हुए आप मालवा में पधार गये और आज भी मालवा में ऋषि सम्प्रदाय के सन्त सती पूज्यश्री कहानजी ऋषिजी म० के ही माने जाते हैं। आपके श्री ताराऋषिजी म० श्री रणछोड़ ऋषिजी म० आदि प्रभावक शिष्य थे। आपके देहोत्सर्ग के पश्चात श्री रणछोड़जी ऋषिजी म. और श्री तारा ऋषिजी म. क्रमश: गुजरात, काठियावाड़ में और मालवा में विचरे और दोनों को पूज्य पदवी प्रदान की गई।
ऋषि सम्प्रदाय इतनी विस्तृत हो गई थी कि पहचान के लिए भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के नाम पर उनके नाम पड़ गये । इन सभी शाखाओं के पूज्यों और सन्तों ने क्रियोद्धार कर धर्म का खूब उद्योत किया। पूज्यश्री तारा ऋषिजी म० के बाद खम्भात शाखा में क्रमश: श्री मंगल ऋषिजी म., श्री रणछोड़ जी म०, श्री नाथा ऋषिजी म०, श्री बेचरदास जी म०पूज्य पदवी पर आसीन हुए।
- इसके बाद श्री माणक ऋषिजी म., श्री हरखचन्द जी म०, श्री भानजी ऋषिजी म०, श्री छगनलाल जी म० आदि पूज्य बने । पूज्य श्री ताराऋषि म. के समय में ऋषि सम्प्रदाय खम्भात और मालवीय शाखा में विभक्त हो गया था। मालवीय शाखा के पूज्य श्री काला ऋषिजी म० हुए । पूज्य श्री काला ऋषिजी म. के मालवा क्षेत्र में विहार होने से अनेक मुमुक्षओं ने संयम ग्रहण किया और उनमें से अनेक ज्ञानी ध्यानी प्रभावक सन्त रहे हैं। मालवीय शाखा का विहार क्षेत्र मालवा, मेवाड़, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के अनेक गाँव और नगर रहे हैं। मालवीय शाखा में अनेक विद्वान संत हुए हैं। जिनमें से कुछ एक नाम इस प्रकार हैं--पूज्य श्री वक्षुऋषिजी म०, श्री पृथ्वी ऋषिजी म०, श्री सोमजी ऋषिजी म०, श्री भीमजी ऋषिजी म०, तपस्वी श्री कुंवर ऋषिजी म०, श्री टेकाऋषिजी म., श्री हरखाऋषिजी म०, श्री कालू ऋषिजी म०, श्री रामऋषिजी म०, श्री मिश्री ऋषिजी म०, श्री जसवन्त ऋषिजी म०, श्री चम्पक ऋषिजी म०, श्री हीरा ऋषिजी म०, श्री भैरव ऋषिजी म०, श्री दौलत ऋषिजी म० (छोटे), श्री सुखाऋषिजी म०, श्री अमीऋषिजी म०, श्री रमाऋषिजी म., श्री रामऋषिजी म०, श्री ओंकार ऋषिजी म., श्री धोगाऋषिजी म०, श्री देवऋषिजी म०, श्री माणक ऋषिजी म. आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। उन सबका यहाँ परिचय देना सम्भव नहीं होने से कतिपय प्रमुख यशस्वी सन्तों का यहाँ परिचय देते हैं। पं० रत्न श्री अमीऋषिजी महाराज
आपका जन्म सं० १९३० में दलौद (मालवा) में हुआ था। पिता श्री का नाम श्री भेरूलालजी और मातु श्री का नाम प्याराबाई था। मगसिर कृष्णा ३ सं० १९४३ को श्री सुखाऋषिजी म. के पास मगरदा (भोपाल) में आपने भागवती दीक्षा अंगीकार की थी। आपकी बुद्धि और धारणाशक्ति अत्यन्त तीव्र थी। शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे । शास्त्रीय और दार्शनिक चर्चा में आपको विशेष रुचि थी । आप जितने तत्वज्ञ थे उतने ही सुयोग्य लेखक भी थे। आप द्वारा २३ ग्रन्थ रचे गये जो आपकी विद्वता की स्पष्ट झलक बतलाते हैं। आपकी काव्य शैली अनूठी थी। साहित्यिक दृष्टि से आपने अनेक चित्र-काव्यों
आचार्यप्रवरब अभिभाचार्यप्रवर आमा
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