Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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आचार्यप्रजिन आचार्यप्रaa आननग्रन्थ
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इतिहास और संस्कृति
बोया वह दिनोंदिन फलता-फूलता ही गया और पाटानुपाट प्रभावक आचार्यों ने जिन शासन की दीप्ति को तेजस्विनी बनाया।
पूज्य श्री सोमजी ऋषिजी महाराज
आप पूज्य श्री लवजी ऋषिजी महाराज से दीक्षित हुए थे और उनके बाद आप उनके उत्तराधिकारी आचार्य बने । अहमदाबाद में पूज्य श्री धर्मसिंह जी महाराज से आपका समागम हुआ और अनेक शास्त्रीय बातों पर चर्चा हुई। पूज्य श्री धर्मसिंह जी की धारणा थी कि अकाल में आयुष्य नहीं टूटता है तथा श्रावक की सामायिक आठ कोटि से होती है। पूज्य श्री सोमजी ऋषिजी म० का समाधान युक्तिसंगत प्रतीत हुआ और मुनि श्री अमीपालजी और श्रीपालजी, पूज्य श्री धर्मसिंह जी से पृथक होकर पूज्य श्री सोमजी ऋषिजी के शिष्य बन गये। इसके बाद लोंकागच्छ की ही एक शाखा कुंवरजी गच्छ के श्री ऋषि प्रेमजी, बड़े हरजी, छोटे हरजी म० भी पूज्य श्रीधर्मसिंह जी महाराज को छोड़कर पूज्य श्री सोमजी ऋषिजी म० की नेश्राय में विचरने लगे । इधर मारवाड़ के नागौरी लोंकागच्छ के श्री जीवाजी ऋषिजी भी पुनः
म अंगीकार कर आपकी आज्ञा में विचरने लगे। इसी प्रकार श्री हरदासजी महाराज भी लाहौर में उत्तराद्ध लोकागच्छ का त्याग करके आपके अनूगामी बने ।
पूज्य श्री सोमजी ऋषिजी म० के व्यापक प्रचार, प्रभाव का देश के सभी स्थानों पर असर हुआ और अनेक सन्तों ने शुद्ध संयम मार्ग अंगीकार किया एवं बहत से श्रावकों ने भी भागवती दीक्षा अंगीकार की, जिससे शासन प्रभावना को वेग मिला ।
पूज्य श्री सोमजी ऋषिजी म. २७ वर्ष तक संयम पालन करके ५० वर्ष की आयु में स्वर्गवासी हो गये । आपके बाद पूज्य पदवी कहानजी ऋषिजी म० को प्रदान की गई।
पूज्य श्रीसोमजी ऋषिजी प्रभावक सन्त थे। आपका शिष्यत्व अनेक भव्यात्माओं ने स्वीकार किया और अपने-अपने क्षेत्र में विशेष प्रभावशाली होने से कहीं पर सन्तों के नाम से, कहीं क्षेत्र के नाम
से वे शाखाएँ जानी पहचानी जाती थीं। जैसे श्री गोधाजी म० की परम्परा, श्री परशराम जी म० की । परम्परा, कोटा सम्प्रदाय, पूज्य श्री हरदास ऋषिजी म० की सम्प्रदाय (पंजाब शाखा) आदि ।
इन शाखाओं में अनेक प्रभावशाली आचार्य हुए और अपने तपोपूत संयम द्वारा जैन शासन की महान सेवाएँ की और कर रहे हैं। इन सब शाखाओं की विशेष जानकारी विभिन्न सम्प्रदायों के इतिहासों में दी गई है। पूज्यश्री कहान ऋषिजी महाराज
आपका जन्म सूरत में हुआ था। स्वभाव से सरल और धार्मिक आचार-विचार वाले थे। आपने सं० १७१३ में सूरत में पूज्य श्री सोमजी ऋषिजी म. से भागवती दोक्षा अंगीकार की। अच्छा ज्ञानाभ्यास किया और पूज्य श्री लवजी ऋषिजी म. के कार्य का व्यापक रूप से विस्तार किया।
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