Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
View full book text
________________
प्राकृत-वाङमय में शब्दालंकार
५७
में दृष्टिगोचर होता है। गद्य के मुक्तक, वृत्तगन्धी, उत्कलिकाप्राय अथवा चूर्णक में अथवा पद्य के विविध-वृत्तनिबद्ध प्रकारों में सर्वत्र अलंकारों का समायोजन अपनी आभा बिखेरने में कभी पीछे नहीं रहा है।
अलङ्कारों का महत्त्व साहित्यकारों ने अलङ्कार-चिन्तन से पूर्व किस विधा का चिन्तन किया होगा? यह कह सकना कठिन है, क्योंकि साहित्यशास्त्र के आदि चिन्तकों ने इस सम्बन्ध में अपना कोई स्वतन्त्र विवेचन न देकर सम्प्रदाय विशेष का ही अवलम्बन लिया है। कहा जा सकता है कि वेदों में-'रसो वै सः' 'रसं वायं लब्ध्वाऽऽनन्दी भवति' आदि मन्त्र पदों की उपलब्धि होने से रस ही सर्वप्रथम साहित्य का मूल है, तो यह उचित नहीं । वहीं वेद-मन्त्रों में-'हविष्मन्तो अरङ कृता:' ऋग्वेद १/४/१४/५, 'सोमा अरङ कृताः, अलङ - करिष्णुमयज्वानम्' तथा शतपथ में--'मानुषोऽलङ्कारः' इत्यादि पाठ आते हैं-जो अलङ्कारों के पक्ष में रस की अपेक्षा स्वयं का महत्त्व अभिव्यक्त करते हैं।
साहित्यशास्त्रों में अलङ्कारों के वैशिष्ट्य को लक्ष्य में रखकर बहुधा कहा गया है कि'न कान्तमपि निभूषं विभाति वनितामुखम् ; काव्यं कल्पान्तरस्थायि, जायते सदलङ कृति , काव्यशोभाकरान धर्मान्लङ कारान् प्रत्यक्षते" काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः । तदतिशयहेतवस्त्वलङ्काराः, सालङ्कारस्य काव्यता, इत्यादि अनेक उक्तियों से प्रेरित होकर ही तो महाकवि जयदेव ने
"अङ्गीकरोति यः काव्यं शब्दार्थावनलङ कृती ।
असौ न मन्यते कस्मादनुष्णमनलं कृती ॥"८ अनलङ कृत काव्य को काव्य मानने में भी आपत्ति की है। अतः हृदय के ओज की अभिव्यक्ति, विचारों की परिपुष्टि, शब्दमाधुर्य की सृष्टि तथा मानसिक चित्रों की स्पष्टता के लिए अलङ्कारों की स्थिति अनिवार्य मानी गई है।
शब्दालङ्कारः : एक अविभाज्य अङ्ग विवेचनशील मानव ने वैज्ञानिक प्रक्रिया के माध्यम से वस्तु के वास्तविक स्वरूप को परखने का पर्याप्त प्रयास किया है। अलङ्कार शास्त्र के आचार्य भी अलङ्कारों का वैज्ञानिक-विभाजन या वर्गीकरण करने में तत्पर रहे। परिणामतः अलङ्कार के प्रमुख तीन भेद--(१) शब्दगत, (२) अर्थगत और
३. काव्यालङ्कार-(भामह) १/१३ । ४. वही १/१६ । ५. काव्यादर्श—(दण्डी) २/१ । ६. काव्यालङ्कार सूत्र--(वामन) ३/१/१ तथा २ । ७. वक्रोक्तिजीवित-१/६ । ८. चन्द्रालोक-१/८ ।
PRIMAnimaanadaaaaaaaaMBAJAJARAMINAABARDAroeluNusanNINNIMAMAnwrAINAMANASAIRASACRAIADEAKIMAM
आगाप्रवनवाभिमासाचार्यप्रवर भिर धाआनन्दा श्रीआनन्द-ग्रन्थ
MHIVimeoNandinwwww
wwww
womammmmmmmmmmamtammanaKASANA
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org