Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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0 डॉ० नरेन्द्र भानावत, एम० ए०, पी-एच० डी०
(प्राध्यापक हिन्दी विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर एवं मानद निदेशक-आचार्य श्री विनयचन्द्र शोध प्रतिष्ठान जयपुर)
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जैनधर्म का सांस्कृतिक मूल्यांकन
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धर्म और संस्कृति :
संकीर्ण अर्थ में धर्म संस्कृति का जनक और पोषक है । व्यापक अर्थ में धर्म संस्कृति का एक अंग है। धर्म के सांस्कृतिक मूल्यांकन का अर्थ यह हुआ कि किसी धर्म विशेष ने मानव-संस्कृति के अभ्युदय और विकास में कहाँ तक योग दिया ? संस्कृति जन का मस्तिष्क है और धर्म जन का हृदय । जब-जब संस्कृति ने कठोर रूप धारण किया, हिंसा का पथ अपनाया, अपने रूप को भयावह व विकृत बनाने का प्रयत्न किया, तब-तब धर्म ने उसे हृदय का प्यार लुटा कर कोमल बनाया अहिंसा और करुणा की बरसात कर उसके रक्तानुरंजित पथ को शीतल और अमृतमय बनाया, संयम, तप और सदाचार से उसके जीवन को सौन्दर्य और शक्ति का वरदान दिया । मनुष्य की मूल समस्या है-आनन्द की खोज । यह आनन्द तब तक नहीं मिल सकता जब तक कि मनुष्य भयमुक्त न हो, आतंकमुक्त न हो, इस भय-मुक्ति के लिए दो शर्ते आवश्यक हैं। प्रथम तो यह कि मनुष्य अपने जीवन को इतना शीलवान, सदाचारी और निर्मल बनाए कि कोई उससे न डरे । द्वितीय यह कि वह अपने में इतना पुरुषार्थ, सामर्थ्य और बल संचित करे कि कोई उसे डरा धमका न सके । प्रथम शर्त को धर्म पूर्ण करता है और दूसरी को संस्कृति । जैनधर्म और मानव-संस्कृति :
जैनधर्म ने मानव संस्कृति को नवीन रूप ही नहीं दिया, उसके अमूर्त भाव तत्व को प्रकट करने के लिए सभ्यता का विस्तार भी किया। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव इस मानव-संस्कृति के सूत्रधार बने । उनके पूर्व युगलियों का जीवन था, भोगमूलक दृष्टि की प्रधानता थी, कल्पवृक्षों के आधार पर जीवन चलता था। कर्म और कर्तव्य की भावना सुषुप्त थी। लोग न खेती करते थे न व्यवसाय । उनमें सामाजिक चेतना और लोक-दायित्व की भावना के अंकुर नहीं फूटे थे । भगवान् ऋषभदेव ने भोगमूलक संस्कृति के स्थान पर कर्ममूलक संस्कृति की प्रतिष्ठा की। पेड़-पौधों पर निर्भर रहने वाले लोगों को खेती करना बताया । आत्मशक्ति से अनभिज्ञ रहने वाले लोगों को अक्षर और लिपि का ज्ञान देकर पुरुषार्थी बनाया। देववाद के स्थान पर पुरुषार्थवाद की मान्यता को सम्पुष्ट किया। अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध लड़ने
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