Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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पुरातत्त्व मीमांसा
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किया और उसके लिए राष्ट्रव्यापक जो विशाल कार्यक्रम उन्होंने बनाया, सद्भाग्य से उस कार्यक्रम के एक प्रमुख अंग की सेवा में सर्व प्रथम समायोग देने का सुयोग मुझे मिला । सन् १९२० में नवजीवनोन्मुख गुजरात में, मेरे ही क्षुद्र निमित्त एवं प्रयत्न से 'गुजरात पुरातत्त्व मन्दिर' की स्थापना हुई थी और लगभग ३० वर्ष के बाद, १६५० में नूतन संघटित सुविशाल राजस्थान में भी, उसी प्रकार के कार्य की प्रगति और प्रवृद्धि के निमित्त, इसी जन के प्रयत्न से, 'राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर' की स्थापना होकर इसकी सेवा में भी सर्वप्रथम योग देने का सौभाग्य मुझको मिला। अपने जीवन की दृष्टि से, मुझे यह भी कोई ऐतिहासिक विधान-सा मालूम देता है ।
सन् १९२० में, जब गुजरात पुरातत्त्व मन्दिर की स्थापना हुई, तब भारत सब प्रकार से पराधीन था । उस पराधीनता से भारत को कैसे मुक्ति मिले और कैसे यह पुरातन - गरिमा- गौरवशाली दिव्य देश स्वतन्त्र होकर संसार में अपना गुरुपद प्राप्त करे उसकी उत्कट आकांक्षा से प्रेरित होकर, अहिंसा एवं सत्य के सर्वश्रेष्ठ तत्त्वदर्शी महर्षि स्वरूप महात्माजी ने देश के सन्मुख अहिंसात्मक सत्याग्रह रूप अद्भुत संग्राम का उद्घोष किया। इस सत्वगुणी संग्राम में अनेक प्रकार के अहिंसक आक्रमण - प्रत्याक्रमण होने के बाद, अन्त में सन् १९४७ के अगस्त की १५वीं ता० को, भारत ने सर्व - प्रभुत्व-सम्पन्न स्वतन्त्रता प्राप्त की । इस प्रकार अहिंसक संघर्ष द्वारा सार्वभौम स्वातन्त्र्य प्राप्त करने की घटना भी संसार के इतिहास में एक विस्मयकारिणी घटना है और हमारे लिये नहीं सारे संसार के लिये वह इतिहास की अद्भुत अनुभूति होती जा रही है । सम्भव है आगामी पीढ़ियों के लिये यह भी एक सबसे महत्त्व का पुरातात्त्विक संशोधन का विषय बन जाय ।
भारत की इस स्वातन्त्र्य प्राप्ति वाली राष्ट्रीय महाक्रान्ति में कुछ अन्यान्य आन्तरिक महाक्रान्तिसूचक घटनायें भी हुईं, जिनमें दो घटनाएँ सबसे मुख्य हैं। इनमें एक तो यह कि इतिहास के आदिकाल से लेकर आज तक पुण्यभूमि भारत का कभी कोई अंग भंग नहीं हुआ था; पर इस महाक्रान्ति में अनादि स्वरूप अखण्ड भारत का अंग भंग होकर उसका इतिहास प्रसिद्ध एवं संस्कृति समृद्ध आर्यावर्त का मूलभूत अंग पृथक हो, पाकिस्तान के रूप में घटित हो गया । गान्धार, पञ्चनद, सिन्धु-सौवीर जैसे इस पुण्यभूमि के प्राचीनतम पवित्र प्रदेश, इससे विलग होकर, भिन्न धर्मीय और भिन्न जातीय संस्कृति के केन्द्र बनने जा रहे हैं । इसका दूरगामी ऐतिहासिक परिणाम क्या होगा और समग्र भारतीय संस्कृति का भावी रूप कैसा बनेगा - यह तो भावी इतिहासकार ही के अन्वेषण का विषय होगा
दूसरी महाक्रान्ति सूचक घटना है— भारत में इतिहासातीत काल से अपना अस्तित्व बताने वाली सब प्रकार की छोटी बड़ी राजसत्तायें - जिनकी संख्या कई सैकड़ों में थी, बिल्कुल शांतिपूर्ण और सहानुभूतिमय ढंग से विलुप्त होकर, सम्पूर्ण भारत में, जनसत्तात्मक लोकहितकारी सुदृढ़ शासन तन्त्र की स्थापना होना । संसार के किसी भी राष्ट्र में इस प्रकार के जनसत्तात्मक शासनतन्त्र की ऐसी अद्भुत रीति से, शान्तिमय स्थापना नहीं हुई है । भारत के भावी इतिहास में यह भी एक बहुत अद्भुत घटना उल्लिखित होगी ।
'राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर' की स्थापना भी इसी ऐतिहासिक घटना का एक परिणाम है । राज
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