Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
View full book text
________________
जैन श्रमण संघ : समीक्षात्मक परिशीलन
१२७
S
संघीय पद : एक विश्लेषण
आचार्य के अतिरिक्त जो अन्य पद निर्धारित थे, उनका लक्ष्य आचार्य के कार्य में सहयोग करना था, जिससे संघ के साधु-साध्वियों का अध्ययन, उनके चातुर्मास, विहार, शेषकालिक प्रवास, वस्त्र-पात्र प्रभृत्ति आपेक्षित उपकरणों की व्यवस्था--यह सब समीचीन रूप में सध सके ।
जैन साहित्य के आधार पर इन पदों के उत्तरदायित्व, कर्तव्य आदि के सम्बन्ध में कुछ विस्तार से लिखना उपयोगी होगा। पदों के कर्तव्य-निर्धारण में स्वस्थ तथा विकसित संघीय जीवन के उन्नयन की कितनी सूक्ष्म दृष्टि थी, इससे यह स्पष्ट होगा । आचार्य
संघ की सब प्रकार की देखभाल का मुख्य उत्तरदायित्व आचार्य पर रहता है । संघ में उनका आदेश अन्तिम और सर्वमान्य होता है ।
"आचार्य सूत्रार्थ के वेत्ता होते हैं। वे उच्च लक्षण युक्त होते हैं । वे गण के लिए मेढिभूत-स्तम्भ रूप होते हैं । वे गण के ताप से मुक्त होते हैं-उनके निर्देशन में चलता गण सन्ताप-रहित होता है, वे अन्तेवासियों को आगमों की अर्थ-वाचना देते हैं-उन्हें आगमों का रहस्य समझाते हैं।'
"आचार्य ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तप-आचार तथा वीर्याचार का स्वयं परिपालन करते हैं, इनका प्रकाश-प्रसार करते हैं, उपदेश करते हैं, दूसरे शब्दों में वे स्वयं आचार का पालन करते हैं तथा अन्तेवासियों से वैसा करवाते हैं, अतएव आचार्य कहे जाते हैं ।"२ और भी कहा गया है
आचिनोति च शास्त्रार्थमाचारे स्थापयत्यपि ।
स्वयमाचरते यस्मादाचार्यस्तैन कथ्यते ।। अर्थात् जो शास्त्रों के अर्थ का आचयन-संचयन-संग्रहण करते हैं, स्वयं आचार का पालन करते हैं, दूसरों को आचार में स्थापित करते हैं। इन कारणों से वे आचार्य कहे जाते हैं। आचार्य की आठ सम्पदाएँ
दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र में आचार्य की विशेषताओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। वहाँ आचार्य की आठ सम्पदाएँ बतलाई गई हैं, जो निम्नांकित हैं।
KE
१. सुत्तत्थविऊ लक्खणजुत्तो, गच्छस्स मेढ़िभूओ य । गणतत्तिविप्पमुक्को, अत्थं वाएइ आयरिओ।
-भगवती सूत्र १.१.१ मंगलाचरण (वृत्ति) २. पंचविहं आयारं, आयरमाणा तहा पयासंता। आचारं दसता, आयरिया तेण वुच्चंति ।।
--भगवती सूत्र १, १, १ मंगलाचरण (वृत्ति) ३. दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र, अध्ययन ४, सूत्र १
'
karanammana.c
om
WwwAIMIMAmraemon
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org