Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
View full book text
________________
Yorr-.-.---
१६०
इतिहास और संस्कृति
गर्जन तथा बिजली की चमक व कड़कड़ाहट को देखकर जिस प्रकार हमारे वेदकालीन पूर्वज महाभयभीत हो जाते थे और प्रकृति के इस महान् उपयोगी कार्य को बड़ी भारी आपत्ति समझते थे उस प्रकार आज हम नहीं मानते; अपनी ही असावधानी के कारण प्रज्वलित हुई अग्नि में भस्म होती हुई अपनी पर्णकुटी को देखकर इस दृश्य को अपने पर कुपित हुए किसी देव अथवा राक्षस का अग्निरूप में आगमन मानते हुए दूर खड़े होकर जिस प्रकार हमारे पूर्वज प्रार्थना करने लगते थे वैसा हम नहीं करते। वायु के वेग से उड़ी हई झौंपड़ी अथवा घास के ढेर को देखकर किसी अदृष्ट चोर के भय से आक्रान्त हमारे पुरखा जिस तरह उस चोर को दण्ड देने के लिए इन्द्र की स्तुति करने लगते थे वैसा भी हम आज नहीं करते हैं। हमारे पूर्वजों में और हममें इस फेरफार (अन्तर) का कारण क्या है ? वेदकालीन आर्यों के बाद उनकी सन्तति द्वारा की गई प्रकृति के गूढ़ तत्त्वों की शोध-खोज ही इसका कारण है। विश्व के रहस्य को समझने के लिए जैसे-जैसे ही उत्तरकालीन मनुष्य विशेष बुद्धिपूर्वक विचार करते गये वैसे-वैसे ही सृष्टि के ये साधारण नियम उनकी समझ में आते गये। उन्हीं लोगों ने मेघ के स्वरूप को जाना, अग्नि के स्वभाव को समझा और वायु की प्रकृति को पहचाना और फिर इनसे निर्भय एवं निश्चिन्त होने के उपायों की योजना की। इससे भी आगे बढ़कर आधुनिक युग के मनुष्य प्राणियों ने प्रकृति की इन स्वच्छन्द शक्तियों के आन्तरिक मर्म को समझा, उनको वश में किया और उनसे कैसे-कैसे काम लेने लगे हैं यह हम लोग प्रत्यक्ष देख रहे हैं और अनुभव कर रहे हैं।
मनुष्य अपने इन्द्रियबल से केवल अपने संसर्ग में आने वाले समसामयिक और अनुभवगम्य विषयों का ही ज्ञान प्राप्त कर सकता है। संसर्गातीत एवं अनभवातीत विषयों का ज्ञान मनुष्य को उसकी इन्द्रियों द्वारा प्राप्त नहीं हो सकता। फिर भी, हम जितने विश्वास के साथ आज के विषयों की चर्चा किया करते हैं उतने ही विश्वास के साथ हजारों लाखों वर्ष पूर्व की बातों की भी चर्चा करते हैं। शिवाजी, प्रताप, अकबर अथवा अशोक को हमारे युग के किसी मनुष्य ने प्रत्यक्ष नहीं देखा है, फिर भी हम इनके अस्तित्व के विषय में उतने ही विश्वस्त हैं जितने अपने में। जिस प्रकार आज हम अपने बीच में बिचरते हुए किसी महात्मा के आदर्श में पूर्ण श्रद्धा रखते हैं उसी प्रकार आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व उत्पन्न होने वाले तीर्थंकर अथवा बुद्ध के आदर्शों में भी उतनी ही श्रद्धा रखते हैं । जिस प्रकार भगवद्गीता के रहस्यकार लोकमान्य तिलक को प्रथम श्राद्ध तिथि हमने मनाई थी उसी प्रकार आज से पांच हजार वर्ष पूर्व जन्म लेने वाले और भगवद्गीता के मूल उपदेष्टा भगवान श्रीकृष्ण की पुन्य जन्मतिथि आने पर भी हम उत्सव मनाते हैं। इन अनुभवातीत और समयातीत विषयों का ज्ञान कराने वाला कौन है ? कौन-से साधनों द्वारा हमने इन भूतकाल की बातों को जान लिया है ? कहने की आवश्यकता नहीं है कि हमको इन बातों का ज्ञान कराने वाला इतिहास शास्त्र है।
ऐतिहासिक साहित्य द्वारा ही हम भूतकाल की बातों को जान सकते हैं ? इतिहास जितना ही यथार्थ और विस्तृत होगा उतना ही हमारा भूतकालीन ज्ञान भी यथार्थ और विस्तृत होगा, यह स्वतः सिद्ध है। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे पूर्वजों द्वारा रचित हमारे देश का यथार्थ और विस्तृत इतिहास उपलब्ध नहीं है । जगत की अन्य प्राचीन प्रजाओं को उनके देश में प्राचीन और विस्तृत इतिहास उपलब्ध नहीं है । जगत की अन्य प्राचीन प्रजाओं को उनके देश में जितना प्राचीन और विस्तृत इतिहास मिल
E
Pos
Jain Education International
-
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org