Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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अभिन आयात अमिन प्रन्थ श्री आनन्द
११८ इतिहास और संस्कृति
ऊपर भगवान बुद्ध के धर्म-संघ की जो चर्चा आई है, उससे स्पष्ट है कि अधिकार, कर्तव्य और अनुशासन की भावना मिट जाने पर किसी भी संस्थान, संगठन या धर्म-संघ की स्थिति यथावत् नहीं रह पाती । उत्तरवर्ती जैन श्रमण संघ के इतिवृत्त से भी यह सिद्ध होता है कि ज्यों-ज्यों अधिकार के न्याय तथा सचाई पूर्वक निर्वाह एवं कर्तव्य भावना के लुप्त हो जाने पर अनुशासन शिथिल होता गया । फलतः धर्म-संघ की जो सुदृढ़, समीचीन और उत्तम व्यवस्था पहले थी, वह नहीं रह पाई । गण, कुल, शाखा
भगवान महावीर के समय से चलती होता रहा। उनके बाद इस क्रम ने एक नया थी । भगवान महावीर के समय व्यवस्था की यथावत् रूप में नहीं चल पाया। सारे संघ का नेतृत्व तक तो चल सका, आगे सम्भव नहीं रहा । फलतः भिन्न नामों से पृथक्-पृथक् समुदाय निकले, जो 'गण' नाम से अभिहित हुए ।
आई गुरु-शिष्य परम्परा का आचार्य भद्रबाहु तक निर्वाह मोड़ लिया । तब तक श्रमणों की संख्या बहुत बढ़ चुकी दृष्टि से गणों के रूप में संघ का जो विभाजन था, वह एकमात्र पट्टधर पर होता था, वह भी आर्य जम्बू उत्तरवर्ती काल में संघ में से समय-समय पर भिन्न
यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि भगवान महावीर के समय में 'गण' शब्द जिस अर्थ में प्रयुक्त था, आगे चलकर उसका अर्थ परिवर्तित हो गया। भगवान महावीर के आदेशानुवर्ती गण संघ के निरपेक्ष भाग नहीं थे, परस्पर सापेक्ष थे । आचार्य भद्रबाहु के अनन्तर जो 'गण' निकले, वे एक दूसरे से निरपेक्ष हो गये । फलतः दीक्षित श्रमणों के शिष्यत्व का ऐक्य नहीं रहा । जिस समुदाय में वे दीक्षित होते, उस समुदाय या गण के प्रधान के शिष्य कहे जाते ।
एक उलझन
भगवान महावीर के नौ गणों के स्थानांग सूत्र में जो नाम आये हैं, उसमें से एक के अतिरिक्त ठीक वे ही नाम आचार्य भद्रबाहु के अनन्तर भिन्न-भिन्न समय में विभिन्न आचार्यों के नाम से निकलने वाले आठ गणों के मिलते हैं, जो कल्प स्थविरावली के निम्नांकित उद्धरणों से स्पष्ट है
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"थेरेहितो णं गोदासेहितो कासवगोत्तेहितो एत्य णं गोदासगणं नामं गणं निग्गए । काश्यपगोत्रीय स्थविर गोदास से गोदास गण निकला ।
...... येरेहितो णं उत्तरबलिस्सहे हितो तत्थ णं उत्तरबलिस्सहगणं नामं गणं निग्गए । स्थविर उत्तर और बलिस्सह से उत्तरबलिस्सह गण निकला ।
थेरेहितो णं अज्जरोहणं हितो कासवगोत्तेहितो तत्थ णं उद्देहगणं नामं गणं निग्गए । काश्यप गोत्रीय स्थविर आर्यरोहण से उद्देह गण निकला ।
थेरेहितो णं सिरिगुत्तहितो हारियसगोत्तेहितो एत्थ णं चारणगणे नामं गणे निग्गए । हारीतगोत्रीय स्थविर श्रीगुप्त से चारण गण निकला ।
येरेहितो भद्दजसे हितो भारद्दायसगोत्तेहितो एत्थ णं उडवाडिय गणें निग्गए । भारद्वाजगोत्रीय स्थविर भद्रयश से उडवाडिय गण निकला ।
येहितो णं कामिहितो कुंडिलसगोतहितो एत्थ णं वेसवाडियगणे नामं गणं निग्गए ।
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