Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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राजस्थानी भाषा में प्राकृत-अपभ्रंश से प्रयोग
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इसके अतिरिक्त राजस्थानी की धातुओं के बहत से शब्द अपभ्रंश शब्दसमूह से ही आये हैं। उदाहरण के लिए छोलना क्रिया को लिया जा सकता है। छोलना क्रिया का सम्बन्ध संस्कृत के किसी रूप से नहीं जोड़ा जा सकता। जबकि जनभाषा अपभ्रंश में 'छोलना' इसी रूप में प्रयुक्त होता था। हेमचन्द्र के 'तक्ष्यादीनां छोल्लादयः ॥ ३६५ ॥ सूत्र के अनुसार तक्षि आदि धातुओं को छोल्ल आदि आदेश होते हैं। यथा
'जइ ससि छोल्लिज्जन्तु' (यदि चन्द्र को छीला जाता)
मेवाड़ी एवं मारवाड़ी में छोलना इसी अर्थ में प्रयुक्त क्रिया है।१६ शिष्ट हिन्दी में यही छीलना हो गया है। शब्द-समूह
राजस्थानी भाषा में उपर्युक्त प्राकृत एवं अपभ्रंश के तत्वों के अतिरिक्त अनेक ऐसे शब्द प्रयुक्त होते हैं, जो किंचित ध्वनि-परिवर्तनों के साथ प्राकृत एवं अपभ्रंश से ग्रहण कर लिए गये हैं । अव्यय, तद्धित एवं संख्यावाची कुछ ऐसे शब्दों की निम्न तालिका से यह प्रवृत्ति अधिक स्पष्ट हो जाती है : यथाआगलो<अगला
ऊखाणउ<आहाणउ<आभाणक अचरिज<अच्छरियं <आश्चर्य
खुड़िया<खुडिअ<त्रुटित आपणी< आफणी< अप्पणीयम् < आत्मीयम् घड़ा<घणो (घना) उणहीज< उसी का
छेडी<छेडि<छेरि<छगल उन्हो<उण्हो<उष्ण
छोरो<छोरो उन्डा<उण्डा (गहरा)
जेवड़ी<जेवडी (रस्सी) जौहर
यह शब्द राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति में बहुप्रचलित है। डा० वासुदेवशरण अग्रवाल ने जौहर को जतुगृह से व्युत्पन्न माना, जो भाषाशास्त्र की दृष्टि से भी ठीक है । यथा---जतुगृह>जउगह >जउघर>जउहर>जौहर । 'अचलदास खीची री वचनिका' में 'जउहर' शब्द प्रयुक्त भी हआ है। किन्तु राजस्थानी के अन्य ग्रन्थों में इसके लिए 'जमहर' शब्द का प्रयोग हुआ है (हम्मीरायण २६२, २७३ आदि)। 'जमहर' यमगृह-मृत्यु का बोधक है। अत: जौहर इसी शब्द का अपभ्रंश मानना चाहिए । तब उसका विकास-क्रम इस प्रकार होगा
यमगृह >जमगृह जमघर>जमहर>जंबहर>जौहर>जौहर ।१७ पैलो<पहिला पातर<पात्र=नर्तकी, हिन्दी में पतुरिया । पाछलो< पिछला बहनेवी<बहिणीवई<भगिनीपति, हि० बहनोई बारहट्ट<बारहट्ट<द्वारभट
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