Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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राजस्थानी भाषा में प्राकृत-अपभ्रंश के प्रयोग
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'काई अधोमुंह तुज्झु' 'ताई पाराई कवण 'घृण' आदि
राजस्थानी के बोलियों में इसके विविध प्रयोग मिलते हैं। यथा-ढूंढाड़ी में 'काई छै' मेवाड़ी में 'कंड है' तथा मारवाड़ी में 'कई हओ' आदि । साहित्य में इसके प्रयोग देखे जा सकते हैं यथा--
'तु काई हिंगोलि' 'तम्हइ कांइ मानउ आपणा' (अ० खीची० री० ब०, १-१-२१.६) कवण के यथावत प्रयोग भी देखने को मिलते हैं । यथा-- 'कवण वज्र झेलियई' 'कउण सिरि वीज सहारइ' (वही. २४)
बोलियों में ढूंढाड़ी का 'कूण', मेवाड़ी और मारवाड़ी का 'कण' अपभ्रंश 'कवण' के ही रूपान्तर हैं, जिसका हिन्दी में 'कौन' हो गया है। इनका विकास इस क्रम से हआ प्रतीत होता है
क:पुन:>को उण>कवुण>कवण>कउण>कुण>कूण>कौन । गुजराती के 'केम' 'एम' भी सीधे अपभ्रंश से आये हैं । हेमचन्द्र के 'कथं-यथा-तथा थादेरेमेमेहेघाडितः ॥ ४०१ ॥ सूत्र के अनुसार अपभ्रंश में कथं, यथा, तथा के 'था' को 'एम' और 'इम' आदेश होते हैं । यथा
'केम सगप्पउ दुठ्ठ दिणु'
गुजराती के 'केम छे', 'एम छे' आदि प्रयोगों में यही प्रवृत्ति देखी जा सकती है । गुजराती का 'अम्हें' सर्वनाम भी अपभ्रंश के अम्हे या अम्हई से आया है। राजस्थानी के उत्तम पुरुष में बहुवचन के सर्वनाम म्हे, म्हां आदि भी अपभ्रंश के एतद् सदृश सर्वनामों में विपर्यय से विकसित हुए हैं। धातुरूप
राजस्थानी भाषा की अनेक धातुएँ प्राकृत एवं अपभ्रंश से गृहीत हैं। यथा-काढ़<कड्ढ, खा, चढ़ < चढ, जान, जाग, डूब<बुड्ड<डुब्ब, बोल<बोल्ल, भूल<भुल्लइ, सुन<सुण, भण<पढइ आदि ।
बोलचाल की भाषा के अतिरिक्त राजस्थानी साहित्य में ऐसी अनेक क्रियाएँ प्रयुक्त हुई हैं, जिनका प्राकृत से साम्य है। उदाहरण के लिए 'डिंगल गीत' नामक संग्रह से निम्न क्रियाएँ देखी जा सकती हैं
'कंवरी सु झला न्हाण करई' 'बण जां रइ नल बसई' 'हइ राजवियां जाय विनइ ल्द'
-(गीत छत्रियां रो तारीफ रो, पृ० ५) इन वाक्यों में 'कर इ', 'बसई', 'हइ' क्रमशः प्राकृत की करइ, वसइ एवं हवइ क्रियाओं के रूप हैं। इनमें कोई विशेष परिवर्तन नहीं है। किन्तु राजस्थानी की कुछ क्रियाएँ परिवर्तित रूप में भी हैं, जिनमें प्राकृत की क्रिया की 'इ' (कथइ कथ+इ) 'ऐ' में परिवर्तित हो गई है। यथा-कथ+इ=ऐ 'कथ' आदि । तुलनात्मक दृष्टि से कुछ क्रियाएं दृष्टव्य हैं । यथा
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