Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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राजस्थानी भाषा में प्राकृत-अपभ्रंश के प्रयोग
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इसी प्रकार स्वरागम, व्यंजनागम, विपर्यय आदि के रूप भी राजस्थानी में खोजे जा सकते हैं। वस्तुतः यह पूरा विषय भाषावैज्ञानिक अध्ययन का है। तभी राजस्थानी के ध्वनि-परिवर्तनों को पूर्णतया स्पष्ट किया जा सकेगा। व्याकरण-तत्व
राजस्थानी भाषा के व्याकरणमूलक अध्ययन से ज्ञात होता है कि इस समुदाय की बोलियों में ब्द-समूह, वाक्य-संरचना, क्रियापद आदि के स्तर पर अनेक नवीनताएँ विकसित हो गयी हैं। फिर भी मूल भाषा प्राकृत एवं अपभ्रंश के व्याकरण के तत्वों का प्रभाव इनमें अधिक है। यद्यपि संस्कृत-व्याकरण का प्रभाव भी कम नहीं है।
संज्ञा
राजस्थानी के संज्ञा रूपों की रचना पर प्राकृत का सीधा प्रभाव है । प्राकृत में प्रथमा विभक्ति के एक वचन परे रहते अकार को ओकार होता है। यथा-रामो<रामः, सुज्जो<सूर्यः, मिओ<मृगः आदि । राजस्थानी में एक वचन में ओकारान्त संज्ञापद ही अधिक हैं । यथा-घोडो, छोरो आदि । इनका प्रयोग इस प्रकार होता है
घोडो जाइ रयो है। छोरो रो रयो है। आदि । कुछ विद्वान राजस्थानी का अपभ्रंश से विकास होने के कारण राजस्थानी की इस ओकारान्त प्रवृत्ति को अपभ्रंश की उकारान्त प्रवृत्ति से विकसित मानते हैं। हेमचन्द्र के स्यमोरस्योत् ।। ३३१ ।। सूत्र के अनुसार अप० में प्र० एवं द्वि० एक वचन परे रहते अकार का उकार होता है । यथा-दहमुहु< दसमुख, संकरु< शंकर आदि । हो सकता है अपभ्रंश की उकार बहुला प्रवृत्ति राजस्थानी में आकर फिर प्राकृत की ओर लौट गयी हो।।
राजस्थानी में बहुवचन संज्ञापद आकारान्त होते हैं। यथा-'इ घोडा कूणका है।' प्राकृत एवं अपभ्रंश में भी बहुवचन में 'घोडा' ही होगा। यथा-एइ ति 'घोड़ा'; आयासे 'मेहा' सन्ति; पव्वयम्मि 'रुक्खा' ण सन्ति आदि । विभक्ति का अदर्शन
प्राकृत में चतुर्थी और षष्ठी विभक्ति को एक कर दिया गया था। यह प्रवृत्ति लोकभाषा द्वारा प्राकृत में आयी थी। अपभ्रंश में विभक्तियों के प्रयोग में अधिक शिथिलता देखने को मिलती है। इसमें मुख्यतः प्रथमा, षष्ठी और सप्तमी ये तीन ही विभक्तियाँ रख गयीं।११ आभीर, गुर्जर आदि जातियों द्वारा उच्चारण-सौकर्य के कारण यह प्रवृत्ति अपभ्रंश में विकसित मानी जा सकती है। १२ इसका प्रभाव गुजराती और राजस्थानी भाषाओं पर भी पड़ा। हेमचन्द्र ने अपभ्रंश में प्रथमा एवं द्वितीया विभक्ति के लोप ३ का विधान करते हुए उदाहरण दिया है।
'एइ ति घोडा एह थलि ।' यहाँ पर 'एइ घोडा' में जस का और 'एइ थलि' में सि विभक्ति का लोप है।
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आचार्यप्रवभिगमन
श्रीआनन्दायर
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