Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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जैन साहित्य में क्षेत्र-गणित
शंकुछिन्नक की पार्श्व भुजा' == V (P-4)+he
+वाण
2
जबकि D= भूमि का व्यास, d=मुख का व्यास और h=ऊँचाई है। 'जम्बूद्वीपण्णत्ति' में वृत्त सम्बन्धी निम्नलिखित सूत्र मिलते हैं1. वृत्त की परिधि२० =v10 विष्कम्भ 2. वृत्त का विष्कम्भ२१
जीवा 2
.4 वाण 3. धनुष की पार्श्व भूजा२२ बड़ा चाप-छोटा चाप 4. जीवा२३
=V4 (विष्कम्भ-वाण)x वाण 5. धनुष२४
=v6 (वाण) + (जीवा) 6. वाण२५
=/ (धनुष) - (जीवा)
6 वाण के लिये एक सूत्र और दिया जो विष्कम्भ और जीवा ज्ञात होने पर प्रयोग किया जाता है। २६
7. वाण विष्कम्भ-V (विष्कम्भ) - (जीवा) 8. शंकुछिन्नक की पार्श्व भुजा की लम्बाई ___-V (D-4)+
जबकि D=भूमि का व्यास,d=मुख का व्यास और h=ऊँचाई है।
'गणितसारसंग्रह' में वृत्त सम्बन्धी गणित के अन्तर्गत धनुष, वाण तथा डोरी के सन्निकट एवं सूक्ष्म मान निकालने के सूत्र दिये हैं।२८ यहां पर 'डोरी' शब्द जीवा के लिये प्रयोग किया है।
1. धनुष की सन्निकट लम्बाई=15 (वाण) + (डोरी) 2. धनुष की सूक्ष्म लम्बाई =V6 (वाण) (डोरी)'
%ER
3. वाण की सन्निकट लम्बाई=/ (धनुष) - (डोरी)
4. वाण की सूक्ष्म लम्बाई =/ (धनुष) - (डोरी) 5. डोरी की सन्निकट लम्बाई=(धनुष)2-5(वाण) 6. डोरी की सूक्ष्म लम्बाई =V (धनुष):--6(वाण)
10वीं शताब्दी के आचार्य नेमिचन्द्र ने 'त्रिलोकसार' में समपार्श्व, शंकू, सूचीस्तम्भ तथा गोले का वर्णन किया है ।२६
आचाप्रति आचार्यप्रवर आज
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भीआनन्द
श्राआनन्द
wayra
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