Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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साचार्य
श्रीआनन्द
आचार्यप्रवभिनय श्रीआनन्दग्रन्थ
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४३०
धर्म और दर्शन
'त्रिलोकसार' में वृत्त सम्बन्धी गणित-सूत्र इस प्रकार मिलते हैं 30 - परिधि का सन्निकट मान =3xव्यास परिधि का सूक्ष्म मान ==V10 व्यास वृत्त की त्रिज्या --9/16 (वर्ग की भुजा), जबकि वृत्त, वर्ग के समक्षेत्रीय है। (जीवा)
== 4 वाण (व्यास-वाण)
= (धनुष):-6 (वाण): (धनुष)
= 6(वाण)+ (जीवा)
=4 वाण ((व्यास + वाण) ____ (जीवा) + 4(वाण)
4 वाण (जीवा):+(2 वाण)
4 वाण
व्यास
=IT(धनुष
वाण
-A/ (धनुष) - (जीवा)
=1/2[व्यास-V (व्यास) - (जीवा)
=V (व्यास) +1/2 (धनुष):---व्यास T का मान-भिन्न-भिन्न समयों में लोगों ने 7 के विभिन्न मान माने हैं। जैन ग्रन्थों में भीग के विभिन्न मान दृष्टिगोचर होते हैं।
'सूर्य प्रज्ञप्ति'31 मेंग का मान V10 प्रयोग किया गया है। ज्योतिष्करण्डक'३२ और 'भगवती सूत्र' 33 में भी ग का मान V10 काम में लाया गया है। 'जीवाभिगमसूत्र' में ग का मान V10 और 3.16 हैं । सूत्र 82 व 109 में तो =V10 माना है परन्तु सूत्र 112 में ग का मान 3.16 है।
'तत्वार्थाधिगमसुत्र' 3 ४ में का मान /10 माना गया है।
'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' ३५ तथा 'उत्तराध्ययन सूत्र' ३६ में 7 का मान 3 से कुछ अधिक (त्रिगुणं सविशेषम्) माना है।
'तिलोयपण्णत्ति'३७में भीग का मान V10 लिया गया है। धवलाकार वीरसेनाचार्य ने ग का मान 355/113 माना है जो सर्वदा विलक्षण एवं शुद्ध है। दिगम्बर ग्रन्थ 'लोकप्रकाश' 3 ८ (लगभग 1651 ई०) में ग का मान - मिलता है ।
महावीराचार्य ने 'गणितसारसंग्रह'3 में 7 का मान केवल 3 मानकर स्थूल क्रिया की है - परन्तु सूक्ष्म कार्य के लिये V10 माना है।
'त्रिलोकसार' में भी आचार्य नेमिचन्द्र ने स्थूल कार्य के लिये 7 का मान 3 तथा सुक्ष्म कार्य के लिये 110 माना है।
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