Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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प्राकृत भाषा :
उद्गम, विकास और भेद - प्रभेद
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मुनि श्री नगराज जी डी० लिट्०
[ इतिहास एवं साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान, अणुव्रत के व्याख्याता ]
देश और काल किया है, उसके
काल-क्रम निर्धारित
भाषा वैज्ञानिकों ने भारतीय आर्य भाषाओं के विकास का जो अनुसार प्राकृत का काल ई० पू० ५०० से प्रारम्भ होता है । पर वस्तुत: यह बात भाषा के साहित्यिक रूप की अपेक्षा से है । यद्यपि वैदिक भाषा की प्राचीनता में किसी को सन्देह नहीं है, पर, वह अपने समय में जनसाधारण की बोलचाल की भाषा रही हो, ऐसा सम्भव नहीं लगता । वह ऋषियों, विद्वानों तथा पुरोहितों की साहित्य - भाषा थी । यह असम्भव नहीं है कि उस समय वैदिकभाषा में सामंजस्य रखने वाली अनेक बोलियाँ प्रचलित रही हों । महाभाष्यकार पतञ्जलि ने प्रादेशिक दृष्टि से एक ही शब्द के भिन्न-भिन्न रूपों के प्रयोग के सम्बन्ध में महाभाष्य में जो उल्लेख किया है, सम्भवत: वह इसी तथ्य को पुष्ट करता है कि कुछेक प्रदेशों में वैदिक भाषा के कतिपय शब्द उन-उन प्रदेशों की बोलियों के संसर्ग से कुछ भिन्न रूप में अथवा किन्हीं शब्दों के कोई विशेष रूप प्रयोग में आने लगे थे । यह भी अस्वाभाविक नहीं जान पड़ता कि इन्हीं बोलियों में से कोई एक बोली रही हो, जिसके पुरावर्तीरूप ने परिमार्जित होकर छन्दस् या वैदिक संस्कृत का साहित्यिक स्वरूप प्राप्त कर लिया हो ।
कतिपय विद्वानों का ऐसा अनुमान है कि वेदों का रचना- काल आर्यों के दूसरे दल के भारत में प्रविष्ट होने के बाद आता है । दूसरे दल के आर्य पंचनद तथा सरस्वती व दृषद्वती के तटवर्ती प्रदेश में होते हुए मध्य देश में आये । इस क्रम के बीच वेद का कुछ भाग की घाटी में बना और बहुत-सा भाग मध्यदेश में प्रणीत हुआ । माना जाता है, सम्भवतः पूर्व में बना हो ।
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पंचनद में तथा सरस्वती व दृषद्वती अथर्ववेद का काफी भाग जो परवर्ती
पहले दल के आर्यों द्वारा जिन्हें दूसरे दल के आर्यों ने मध्यदेश से खदेड़ दिया था, वेद की तरह किसी भी साहित्य के रचे जाने का उल्लेख नहीं मिलता। यही कारण है कि मध्यदेश के चारों ओर के लोग जिन भाषाओं का बोलचाल में प्रयोग करते थे, उनका कोई भी साहित्य आज उपलब्ध नहीं है । इसलिए उनके प्राचीन रूप की विशेषताओं को हम नहीं जान सकते, न अनुमान का ही कोई आधार है । वैदिक युग में पश्चिम, उत्तर, मध्यदेश और पूर्व में जनसाधारण के उपयोग में आने वाली इन बोलियों के
श्री आनन्द अन्थ
श्री आनन्द
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अभिनंद
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