Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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धर्म और दर्शन
जा सकता है। तीसरी प्रक्रिया में भेद और संघात की रचना एक साथ होती रहती है । जिसमें परमाणु विघटित होते हैं तो कुछ संघटित होते हैं। बन्ध का अर्थ यहाँ कर्म बन्ध प्रकृतियों की अपेक्षा न ग्रहण कर स्कन्ध का बन्ध-संयोग समझना चाहिये।
अवगाहनशक्ति-परमाणु की रचना में जो खोखलापन की चर्चा की गई है, उसी के कारण संकोच विस्तार की सम्भावना होती है। अतः आकाश द्रव्य में सब द्रव्यों को अवकाशदान मिलता है । आकाश के प्रदेश असंख्यात हैं, तो पुद्गल के प्रदेश अनन्त हैं । अतः यहाँ स्वाभाविक ही प्रश्न उपस्थित होता है कि असंख्यात प्रदेश में अनन्त प्रदेशों का समावेश कैसे सम्भव है ? इस सन्दर्भ में पुद्गल का एक अविभाग परिच्छेद परमाणु आकाश के एक प्रदेश को (unit space) घेरता है। उसी प्रदेश में और अनन्तानन्त पुद्गल परमाणु अपने खोखलेपन के कारण या अवगाहन की शक्ति के कारण स्थित हो सकते हैं। इसी सूक्ष्म परिणमन शक्ति के कारण असंख्यात प्रदेश में अनन्तानन्त पुद्गल परमाणु रह सकते हैं। तलवार या तलवार की धार पर स्थित परमाणु की वह धार उन्हें खण्डित नहीं कर सकती ।३६ वह अन्तिम भाग है। उसमें जुड़ने की और अलग होने की शक्ति है । वह कार्य रूप नहीं, कारण रूप है। उसमें अवगाहन की महान् शक्ति विद्यमान है।
पुद्गल का वर्गीकरण-परमाणु और स्कन्ध ये दो पुद्गल के प्रमुख भेद ० हैं । परमाणु का विभाजन तो हो नहीं सकता। स्कन्ध तो उसी के कारण बनता है। उसके छः भेद हैं४१
१. स्थूल स्थूल (Solid), २. स्थूल (Lequid), ३. सूक्ष्म-स्थूल (Gass), ४. स्थूल-सूक्ष्म (Energy), ५. सूक्ष्म (Fine matter beyound sense-pereepation), ६. सूक्ष्म-सूक्ष्म (Extra fine matter)।
प्रकृति, शक्ति, तम, प्रकाशादि को पुद्गल का पर्याय माना है। ४२ तम के बारे में मतभेद है। किसी ने उसे प्रकाश का अभाव माना तो किसी ने उसीकी अर्थात् प्रकाश की अनुपस्थिति स्वीकार किया।४३ सर्वार्थसिद्धि में अंधकार को भावात्मक न मानकर 'दृष्टिप्रतिबंध कारण व प्रकाशविरोधी' माना है। विज्ञान ने प्रकाश की भांति अंधकार को स्वतन्त्र रूप में स्वीकार किया।
'छाया' जिसे अंग्रेजी में (Shadow) कहते हैं, वह प्रकाश के निमित्त से होती है।४४ प्रकाश के दो-आतप और उद्योत भेद हैं।४५ सूर्य और अग्नि के उष्ण प्रकाश को आतप कहते हैं । जुगनू, चन्द्रमा आदि के शीतल प्रकाश को उद्योत कहते हैं। शब्द, तम, छाया, आतप, उद्योत ये सब स्थूल सूक्ष्म के पर्याय हैं। ये किसी के गुण नहीं। वैशेषिक दर्शन में४६ मात्र शब्द को आकाश का गुण माना है। जबकि शब्द पौद्गलिक है, वह कान से सुना जाता है। इसके सम्बन्ध में विज्ञान भी सहमत है।
३८. द्रव्यसंग्रह-जावदियं आयासं'... ३६. भगवती ५/७. ४०. तत्त्वार्थसूत्र, अ० ५ ४१. नियमसार-अतिस्थूलाः.......''सूक्ष्म इतिः । ४२. द्रव्यसंग्रह-सद्दोबंधो........"दव्वस्स पज्जाया । ४३. सर्वार्थसिद्धि-तमोदृष्टिः प्रतिबंध कारणं प्रकाश विरोधी। ४४. वही, ५/२४. ४५. वही, अ० ५. ४६. तर्कसंग्रह, पृ० ६ 'शब्दगुणकमाकाशम् ।'
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