Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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जैन साहित्य में क्षेत्र-गणित
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___इसके अतिरिक्त वृत्ताकार, त्रिभुजाकार और चतुर्भुजाकार वलय का भी उल्लेख जैन ग्रन्थों में उपलब्ध है। इन आकृतियों को जैन साहित्य में क्रमशः वलयवृत्त, वलयत्रिस्र और वलय चतुस्र के नाम से पुकारा जाता है । ये आकृतियां निम्न आकार की हैं :
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वलयवत्त चित्र १६
वलयत्रित्र चित्र २०
वलयचतुर्स चित्र २१
'गणितसारसंग्रह' नामक ग्रन्थ में त्रिभुज, चतुर्भुज तथा वक्ररेखीय आकृतियों का वर्णन मिलता है। इसमें त्रिभुज के तीन प्रकार की चर्चा की है जो भुजाओं के विचार से है। कोणों के विचार से त्रिभुजों का भेद नहीं किया है, यद्यपि समकोण त्रिभुज का गणित अवश्य मिलता है। इसके अनुसार त्रिभुज निम्नप्रकार के हैं-- .
१. समत्रिभुज (समत्रिबाहु त्रिभुज) २. द्विसमत्रिभुज (समद्विबाहु त्रिभुज) ३. विषम त्रिभुज (विषमबाहु त्रिभुज)
समत्रिभुज चित्र २२
द्विसमत्रिभुज चित्र २३
विषम त्रिभुज
चित्र २४
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'गणितसारसंग्रह' में चतुर्भुज के पांच प्रकार बतलाये हैं जो इस प्रकार हैं
१. समचतुरस्र (वर्ग) २. द्विद्वि समचतुरस्र (आयत) ३. द्विसमचतुरस्र (समलम्ब चतुर्भुज जिसकी दो असमान्तर भुजायें समान लम्बाई की हों) । ४. त्रिसमचतुरस्र (समलम्ब चतुर्भुज जिसकी तीन भुजायें समान लम्बाई की हों) ५. विषमचतुरस्र (साधारण चतुर्भुज)
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आचार्गप्रवरसाजनआचार्य
आत्रमा
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