Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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आचार्यदेव श्री आनन्दऋषि का प्रवचन विश्लेषण
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"आधुनिक युग में तो हमें कदम-कदम पर ज्ञान दाताओं की प्राप्ति होती है। ज्ञान के नाम पर शिक्षा देने वालों की आज तनिक भी कमी नहीं है। स्कूलों और कालेजों में शिक्षा देने वाले सभी अपने आपको ज्ञानदाता ही मानते हैं । किन्तु ज्ञान के नाम पर विभिन्न विषयों को रटाकर विश्वविद्यालयों की डिगरियां दिलवा देना ही क्या ज्ञान-लाभ करना कहलाता है ? जिन कतिपय प्रकार की जानकारियों को प्राप्त कर ऊँची-ऊँची नौकरियाँ मिल भी जाती हैं और अधिक से अधिक तनख्वाह मिलने लगती है, क्या उसे ही ज्ञान हासिल करना कहा जा सकता है ? नहीं, अगर ज्ञान प्राप्त करके भी मानव सच्चा मानव नहीं बन सका, उसमें आत्म-विश्वास उत्पन्न नहीं हो सका, उसके अन्दर छिपी हुई महान शक्तियाँ जाग्रत नहीं हो सकीं तथा उसका चरित्र सर्वगुण सम्पन्न नहीं बन सका तो वह अनेक विद्याओं का ज्ञाता और अनेक भाषाओं का जानकार विद्वान भी ज्ञानी नहीं कहला सकता ।"
- आनन्द प्रवचन भाग २, पृ० १४७ यहाँ कतिपय विशेषताओं के माध्यम से आनन्द प्रवचनों की विवेचना करने का लघु प्रयास किया गया है ।
श्रीमान श्रीचन्द सुराना 'सरस' के मतानुसार आनन्द प्रवचन वास्तव में ही आनन्द की एक स्रोतस्विनी है। इसके पृष्ठ उलटते जाइये पढ़ते जाइए और मन में एक आध्यात्मिक शांति, आनन्द और प्रसन्नता की हिलोर अनुभव करते जाइये ।
संक्षेप में मैं यही निवेदन करना चाहूँगा कि परमपूज्य आचार्य सम्राट के ये प्रवचन आज के सन्तप्त, विकल एवं भ्रमित मानव के लिए आन्तरिक उल्लास के प्रदाता हैं, कल्याणकारी मार्ग के दर्शक हैं और शिवत्व की प्राप्ति के लिए अमर साधन हैं।
आनन्द प्रवचन के चार भागों में गुम्फित प्रवचनों की तालिका
१. मंगलमय धर्मदीप |
२. प्रार्थना के इन स्वरों में ।
३. तिन्नाणं तारियाणं ।
४. नहि ऐसो जन्म बार-बार ।
५. कपाय- विजय ।
६. ऐसे पुत्र से क्या ?
७. लेखा-जोखा |
८. बहुपुष्प केरा पंज थी।
६. करम गति टारी नहि टरे ।
१०. जाणो पैले रे पार । ११. यादृशी भावना यस्य । १२. कटुक वचन मत बोल रे ।
१३. यही सयानो काम | १४. अनमोल सांसें
१. उठ जाग मुसाफिर ! २. राज्य की अमिट बुभुक्षा । ३. पेट के लिए कितने पाप ?
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भाग १
१५. अब थारी गाड़ी हँकवा में ।
१६. भक्ति और भावना ।
१७. रक्षाबन्धन का रहस्य ।
१८. अमरता की ओर ।
१६. मानव जीवन की महत्ता ।
२०. बलिहारी गुरु आपकी । २१ अमरत्व प्रदायिनी अनुकम्पा । २२. दुर्गतिनाशक दान |
२३. गुणानुराग मुक्ति का मार्ग । २४. सर्वस्य लोचनं शास्त्रं । २५. जन्माष्टमी से शिक्षा लो । २६. धर्म का रहस्य ।
२७. सुनहरा संशय २८. नेकी कर कुए में डाला । भाग २
१३. सबसे हिल - मिल चाहिए। १४. लाख रुपए का आदमी । १५. कर्मबन्धन से बचाव ।
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आचार्य प्रव
आणाय प्रव
7 25 73/1944 10 3162953
आन्द
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