Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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भावना भवनाशिनी अरब देश में नावेर नाम के एक व्यक्ति के पास बहुत ही बढ़िया नस्ल का एक घोड़ा था । वहीं रहने वाले एक बाहर नामक व्यक्ति ने घोड़े को देखा तो उसे स्वयं लेने की इच्छा की।
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दाह ने नावेर से बहुत सा धन लेकर अथवा बहुत से ऊंट लेकर अपना घोड़ा देने के लिए कहा, किन्तु नावेर को भी अपना घोड़ा अत्यन्त प्रिय था, अतः उसने किसी भी कीमत पर अपना घोड़ा देने से इन्कार कर दिया ।
किन्तु दाहर उन व्यक्तियों में से था, जो नीति अनीति का विचार किये बिना किसी भी तरह से अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में रहते हैं । उसने एक फकीर का वेश धारण किया और अपने आपको अत्यन्त रुग्ण दिखाते हुए जियर से नावेर घोड़े पर चढ़कर जाया करता था, उस रास्ते पर बैठ गया । कुछ समय बाद नावेर जब घोड़े पर सवार होकर उधर से गुजरने लगा तो दाहर ने अपनी अशक्तता का प्रदर्शन करते हुए उससे प्रार्थना की कि वह घोड़े पर चढ़ाकर उसे अगले गाँव तक ले चले। नावेर बड़ा दयालु था, उसे फकीर वेशधारी दाहर पर दया आ गई और उसे घोड़े पर बैठाकर स्वयं पैदल चलने लगा ।
किन्तु दाहर ने घोड़े पर बैठते ही चाबुक फटकारते हुए नावेर से कहा- तुमने सीधी तरह घोड़ा नहीं दिया, अतः मैंने उसे अपनी चतुराई से ले लिया है ।'
नावेर ने यह देखा तो पुकार कर दाहर से कहा- 'भाई ! तुमने असत्य भाषण करके मेरा घोड़ा तो ले लिया तो कोई बात नहीं, किन्तु ख़ुदा के लिए अपने असत्य की ऐसी सफलता का जिक्र किसी से मत करना, अन्यथा और लोग भी इसी प्रकार झूठ बोलकर अन्य निर्धन या भोले-भाले लोगों को ठगना प्रारम्भ कर देंगे और इस पृथ्वी पर पाप का बोझ बढ़ने लग जायेगा ।"
नावेर की यह बात सुनकर दाहर के हृदय में एकदम और अप्रत्याशित परिवर्तन आ गया। उसने उसी वक्त लौटकर घोड़ा नावेर को लौटा दिया तथा सदा के लिए असत्य का त्याग करके उससे मैत्री कर ली ।
यह था शुद्ध हृदय वाले तथा सत्य बोलने वाले की आन्तरिक शक्ति का प्रभाव । सत्य का जिस प्रकार प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है, उसी प्रकार अप्रत्यक्ष प्रभाव भी पड़े बिना नहीं रहता, क्योंकि भावना में बड़ी भारी शक्ति छिपी रहती है। सत्यवादी की अन्तरात्मा इसीलिए अत्यन्त प्रभावशाली बन जाती है और वह शैतान के हृदय को परिवर्तित करने की क्षमता भी पा लेती है । नावेर का हृदय निष्कलंक और सत्य के तेज से दीप्त था, इसीलिए दाहर के हृदय में उसके थोड़े से शब्दों ने ही परिवर्तन ला दिया।
हमें
संकट में भी सत्य को न त्यागो सचाई का त्याग नहीं करना चाहिए । अज्ञानांधकार दूर होकर सम्यक् ज्ञान
किसी भी प्रकार की हानि या प्राणनाथ के भय से भी ऐसा करने पर ही हमारी आत्मा शक्तिमान बनेगी तथा हृदय की पवित्र ज्योति जल उठेगी। संसार के सभी धर्म सत्यवादिता पर बड़ा ओर देते हैं तथा सत्य को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं। कहा भी है---
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ਸਰ
वेदाधिगमन सर्व तीर्थावगाहनम् । सत्यस्य च राजेन्द्र ! कलां नार्हन्ति षोडशीम् ।
- महाभारत समग्र वेदों का पठन और समस्त तीथों का स्नान सत्य के सोलहवें भाग की भी बराबरी नहीं कर
सकता ।
सत्य एक ऐसा ज्योतिर्मय दीपक है जिसे किसी भी प्रकार छुपाया नहीं जा सकता, क्योंकि वह अपना प्रकाश स्वयं लेकर चलता है। उसके समक्ष असत्य क्षणमात्र को भी ठहर नहीं सकता । उदाहरण के
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आचार्य अवर अभिनंदन आआनन्द न्य
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