Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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कम खाए, सुख पाए
१६३
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वस्तुतः अभिमान मनुष्य को नीचे गिराता है किन्तु नम्रता उसे ऊँचाई की ओर ले जाती है। महात्मा आगस्टाइन से एक बार किसी ने यह पूछ लिया-'धर्म का सर्वप्रथम लक्षण क्या है? उन्होंने उत्तर दिया
'धर्म का पहला, दूसरा, तीसरा और किबहना सभी लक्षण केवल विनय में निहित हैं।'
अधिक क्या कहा जाये, नम्रता समस्त सद्गुणों की शिरोमणि है । नम्रता से ही सब प्रकार का ज्ञान और सर्व कलायें सीखी जा सकती हैं, क्योंकि नम्र छात्र अपने क्रोधी-से-क्रोधी गुरु को भी प्रसन्न कर लेता है, जबकि अविनयी शिष्य शांतस्वभावी गुरु को भी क्रोधी बना देता है। स्पष्ट है कि ज्ञान हासिल करने वाले शिष्य को अत्यन्त नम्र स्वभाव का होना चाहिये ।
बंधुओ ! मैं आपको बता यह रहा था कि प्रत्येक आत्म-हितैषी व्यक्ति को सम्यकज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिये और इसके लिये उसे ज्ञानप्राप्ति के समस्त उपायों को भली-भांति समझकर उन्हें कार्यरूप में परिणत करना चाहिये । जैसा कि मैंने अभी बताया है, ऊनोदरी भी ज्ञान-प्राप्ति का एक उपाय है।
भूख से कम खाने से प्रथम तो खाद्य पदार्थों पर से आसक्ति कम होती है, दूसरे निद्रा एवं प्रमाद में भी कमी हो जाती है और तभी व्यक्ति स्वस्थ मन एवं स्वस्थ शरीर से ज्ञानाभ्यास कर सकता है। कम खाना अर्थात् ऊनोदरी करना जिस प्रकार आध्यात्मिक दृष्टि से तप है, उसी प्रकार ज्ञानार्जन में सहायक भी है। हमें दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण मानकर उसे अपनाना चाहिये ।
गया
आनन्द-वचनामृत
- अश्रद्धा-अधर्म है।
श्रद्धा-धर्म है। अश्रद्धा-असत्य है। श्रद्धा-सत्य है। अश्रद्धा-अंधकूप है। श्रद्धा-नन्दनवन है। अश्रद्धा-विष है, मनोबल के महावृक्ष को धीरे-धीरे खोखला करने वाला घुन है। श्रद्धा-अमृत है। आत्मशक्ति के कल्पवृक्ष को पल्लवित, पूष्पित करने वाला
मधुर रसायन है। 0 साधारण पुरुष अवसर को खोजता रहता है, वह सोचता रहता है कि कोई
अवसर मिले तो कुछ महत्वपूर्ण कार्य करके दिखाऊं।। कर्तृत्वशील पुरुष के पास अवसर स्वयं चले आते हैं। वे छोटे-छोटे से प्रसंग व क्षण को भी अवसर समझकर कुछ न कुछ महत्वपूर्ण कार्य कर लेते हैं।
आगार्यप्रवर अभिसागार्यप्रवर अभा श्रीआनन्दग्रन्थ श्रीआनन्द अन्य
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Kwyyyan
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