Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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आचार्यप्रवभिआचार्य श्रीआनन्दअन्यश्रीआनन्दा अन्य
१६० आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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सबका चिन्तन कैसे होगा और जब चिन्तन नहीं किया जायेगा तो पापों से बचने और पुण्यों का संचय करने का प्रयत्न भी कैसे होगा? और यह नहीं होगा तो मनुष्य जन्म का लाभ जो आत्मा की मुक्ति है, वह उठाना भी सम्भव नहीं हो सकेगा।
मेरे कहने का अभिप्राय यही है कि हमें शरीर के द्वारा लाभ लेना है, हानि नहीं उठाना है और लाभ तभी उठाया जा सकता है जबकि इसकी सार-सम्भाल और पुष्टि के निमित्त से हम पापों का उपाजन न करें, वरन इसकी सहायता से सेवा, त्याग और तपस्या आदि करते हए आत्म-कल्याण के मार्ग पर बढ़ें। जो भव्य प्राणी इस बात को समझ लेते हैं तथा सन्मार्ग पर चलते हैं, वे अपना इहलोक और परलोक दोनों ही सुधारने में समर्थ बन जाते हैं।
तीन बातें
उर्दू भाषा में तीन बातें कही गई है—१. भलाई कर, २. बदी से बच और ३. परहेजगारी कर । ये तीनों बातें मानव के जीवन को उन्नति की ओर ले जाती हैं। प्रेरणा देती है-सदा भलाई करो। इस संसार में जन्म लेकर भी अगर तुम्हें उत्तम मनुष्यगति प्राप्त हुई है तो कुछ पुण्य-संचय कर लो। यहाँ से जाना तो प्रत्येक को पड़ेगा । चाहे कितने भी वर्ष यहाँ रह लें, एक दिन विदाई का अवश्य आयेगा। सौ वर्ष की उम्र पाने वाला और हजार तथा लाख वर्ष की उम्र पाने वाला जीव भी अपना आयुष्य पूर्ण करके प्राप्त शरीर को छोड़ेगा । इसीलिए कहा जाता है-एक दिन तुमको यहाँ से अवश्य जाना है अतः स्वयं भलाई के मार्ग पर चलो तथा औरों को भी इस मार्ग पर चलने की प्रेरणा दो।
दूसरी बात है-बदी से बाज आ । आवश्यकता तो यही है कि मनुष्य नेकी करे अर्थात् दूसरों का भला करे, अगर वह यह न कर सके तो कम-से-कम बदी से तो बचे । किसी भजन की एक पंक्ति है
'तू भला किसी का कर न सके तो बुरा किसी का मत करना ।' हम तो आज देखते हैं कि न्याय, नेकी और सचाई का मानो लोप ही हो गया है । ऊपर से लेकर नीचे तक के शासनाधिकारी अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में रहते हैं।
बदी से बचने के लिए मनुष्य को झूठ, फरेब, छल, कपट करता और धोखेबाजी आदि सभी दुर्गणों से बचना चाहिए। ये सभी दोष बदी के मूल में रहते हैं। इन्हीं के आधार पर बदी का महल खड़ा होता है।
तीसरी बात--परहेजगारी करो। आपने भलाई कर दी और बदी से भी बच गये पर परहेज नहीं रखी तो सब गड़ गोबर हो जायेगा । कैसे होगा? यह यहाँ बैठी हमारी माता बहनों से पूछो । वे अनेक वस्तुओं का अचार डालती हैं और जब खाने को निकालती है तो क्या आटे से सने हाथों से या जूठन से भरी कलछी से उसे निकालती हैं ? नहीं, वे अत्यन्त सावधानी पूर्वक मंजे हुए साफ चम्मच से ही अचार निकालती हैं । क्योंकि गन्दे हाथ या गंदे बर्तन से निकालने पर अचार सड़ जाता और खाने लायक नहीं रहता।
यही बात हमारे सद्गुणों के लिए भी है । अगर उन्हें थोड़े से समय के लिए भी दुर्गुणों की संगति में छोड़ दिया तो इन्हें दुर्गण बनते देर नहीं लगती है। गुणवान व्यक्ति दुर्गुणी पुरुषों की संगति में रहकर कितनी भी सावधानी क्यों न रखे, कुछ न कुछ दुर्गण उसमें आ ही जायेगे । इसलिए सन्त तुलसीदास जी ने कहा है
को न कुसंगति पाय नसाई , रहे न नीच मते चतुराई ।
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