Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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साया
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आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सुशिक्षक पर । इसी प्रकार सुसंस्कारों की बुद्धि एवं सुगुणों की प्राप्ति वह संतजनों की सुसंगति से करता है। इसी का नाम सहयोग है। सहयोग के अभाव में मानवजीवन कभी भी सम्यक प्रकार से अपनी जीवन यात्रा आगे नहीं बढ़ा सकता।
मनप्य तो क्या, देवता भी एक दूसरे के सहयोग के बिना अपने कार्य में सफल नहीं हो सकते । सहयोग के अभाव में देवसंसार भी निष्क्रिय होता है। हिरणगमेषी देवों को भी इन्द्र की आज्ञा माननी पड़ती है और आभियोगिक देवता भी अपने से निम्न कोटि के देवताओं को हुक्म देते हैं, जो उन्हें मानना पड़ता है। कहने के अभिप्राय यही है कि प्रत्येक का कार्य दूसरे के सहयोग से चलता है। इसीलिये संस्कृत में एक वाक्य में कहा गया है--
जीवो जीवस्य जीवनम् । __ अर्थात् एक जीव का जीवन दूसरे जीव पर आश्रित है। किन्तु इस वाक्य का अनेक लोग बड़ा भयंकर अर्थ लगाते हैं । वे कहते हैं--जीव जीव का जीवन है, इससे तात्पर्य है दूसरे जीव का भक्षण करके जीवन को टिकाया जाये।
किन्तु उनकी युक्ति महा अज्ञान और भ्रम से परिपूर्ण है। वे यह नहीं सोचते कि मनुष्य बुद्धि और विवेक से विभूषित प्राणी है तथा पशु-पक्षी एवं कीट-पतंग आदि अन्य समस्त जीव-जन्तु बुद्धिहीन हैं। अतएव उसे बुद्धिहीन जीवों का अनुकरण न करके अपने निर्मल विवेक और बुद्धि का ही अनुसरण करना चाहिये । अगर मनुष्य अपने से निर्बल प्रत्येक प्राणी और मनुष्य की हत्या करने लग जाये तो क्या सृष्टि का क्रम न बिगड़ जायेगा? मनुष्य को मनुष्य बनकर रहना है या पशु बन कर ? स्पष्ट है कि मनुष्य को मनुष्य बनकर रहना है, न कि पशु बनकर।
जीव जीव का जीवन है, इसका सही अर्थ यह है कि जीव जीव का सहायक है, सहारा है, उसका नाश नहीं करना है। संसार का कोई भी धर्म इस बात का समर्थन नहीं करता कि मानव किसी भी अन्य प्राणी का घात करे और अपना जीवन रखने के लिये उसे खा जाये। एक फारसी कवि ने कहा है
हजार गंजे कनायत हजार गंजे करम । हजार इताअत शबहा, हजार वेदारी॥ हजार सिजदाव हर सिजदा हर हजार नमाज ।
कबूल नेस्त गर खातरे बयाजारी॥ अर्थात् चाहे मनुष्य अत्यन्त धैर्यवान हो, प्रतिदिन हजार खजाने दान करता हो, हजारों रात्रियां ईशभजन में व्यतीत करता हो, हजारों प्रणाम और उनके साथ हजारों नमाज पढ़ता हो, फिर भी उसकी वे सब शुभ क्रियायें व्यर्थ चली जायेंगी अगर वह किसी भी अन्य प्राणी को तनिक भी कष्ट देता है।
आप समझ गये होंगे कि किसी भी अन्य प्राणी को तनिक-सा कष्ट देना भी जब गहित है तो फिर उसका वध करना और उससे अपने जीवन को टिकाने का प्रयत्न करना तो कितना भयंकर फल प्रदान करने वाला होगा। इसलिये हमें शास्त्र की वाणी और संत महापुरुषों के मार्गदर्शन पर विश्वास करते हुए अपने जीवन को निर्मल बनाने का प्रयत्न करना चाहिये । हम जो सोचते हैं और करते हैं, वही सत्य है ऐसा कदाग्रह करना विनाश को निमंत्रण देना है।
इसलिये मोक्ष के अभिलाषी व्यक्ति को सर्वप्रथम कदाग्रह छोड़कर जहां से भी गुण मिलें, जहां से सचाई हासिल हो, उसे पाने का प्रयत्न करना चाहिये तथा औरों से सहयोग लेते हुए अपना सहयोग औरों को प्रदान करना चाहिये। सहयोग के अभाव में कहीं भी काम नहीं चलता। बिना किसी के सहयोग के वह अपनी जीवन यात्रा को एक कदम भी नहीं बढ़ा सकता।
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