Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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मानवजीवन का सदुपयोग
१६१
कुसंग में रहकर कौन व्यक्ति बिगड़ नहीं जाता ? अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति कुसंगति का कुछ-न-कुछ प्रभाव लेकर ही रहता है । अतः चतुराई इसी में है कि कुसंग से बचा जाये, निकृष्ट व्यक्तियों का कभी साथ ही न किया जाये ।
इसी का नाम परहेज करना है । जो समझदार प्राणी इस बात का ध्यान रखते हैं, वे कुपथ की ओर नहीं जाते । सदा भले कार्यों में रत रहो तथा सांसारिक झमेलों से समय बचाकर आत्मसाधना में गो। इस शरीर को औरों का अपकारी और अपने भी कर्मबंधन का कारण मत बनाओ, वरन नेक और भले कार्यों को करते हुए दोनों का भला हो ऐसा उपाय करो ।
बन्धुओ ! आप मेरे कथन का सारांश समझ गये होंगे। मैंने दो बातें बताई हैं। पहली है— इस शरीर को अधिकाधिक भौतिक सुख पहुँचाने तथा हृष्ट-पुष्ट बनाये रखने को ही इस जीवन का उद्देश्य नहीं मानना चाहिए | क्योंकि जो व्यक्ति शरीर को ही अपना सब कुछ समझ लेते हैं, उनका आहार पर संयम नहीं रहता और शरीर की पुष्टि के लिए वे मांस, मदिरा आदि अभक्ष्य और निकृष्ट पदार्थों से भी परहेज नहीं रखते ।
दूसरी बात है -सदा पर - हित में लगे रहना । अर्थात् भलाई के कार्य करना । मनुष्य अपने असीम ज्ञान से और भक्त अपनी तन्मय भक्ति से जिस उद्देश्य की प्राप्ति करता है, नेक व्यक्ति केवल अपने त्याग और परोपकार के बल पर बिना कामना किये भी उस उद्देश्य को पा लेता है ।
जो प्राणी इन दोनों बातों के महत्त्व को समझ लेते हैं, वे अपने इस दुर्लभ जन्म और देह का सच्चा सदुपयोग करते हुए एक दिन इस संसार कारागृह से अवश्यमेव मुक्त हो जाते हैं ।
आनन्द-वचनामृत
[[ कमजोरी और रोग का इलाज यह नहीं है कि उसकी चिन्ता की जाय, चिन्ता से तो कमजोरी बढ़ती है, रोग प्रबल होता है ।
देर
मन को निश्चित और प्रसन्न रखना, शक्ति सम्पन्न बनाना ही कमजोरी और रोग की अमोघ चिकित्सा है ।
संसार में जो भी महापुरुष हुए हैं, और जिसने भी मनुष्यजाति के इतिहास में कुछ नया प्रकाश फैलाया है, उसके मूल में एक ही शक्ति रही है - अदम्य कर्तव्यनिष्ठा ।
कर्तव्यनिष्ठ मनुष्य ही संसार का सर्वश्रेष्ठ मनुष्य बन सकता है ।
राई के दाने जब बिखर जाते हैं तो उन्हें चुन-चुनकर एकत्र करना कठिन हो जाता है । वैसे ही मन की शक्तियाँ जब विषयों की भूमि पर बिखर जाती हैं तो उनको केन्द्रित करना कठिन होता है ।
बिखरे राई के दानों को झाड़ ू से एकत्र किया जा सकता है, वैसे ही मन की बिखरी शक्तियों को ज्ञान की बुहारी से केन्द्रित करना चाहिए ।
आचार्य प्रव28
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आमदन आने व आय अभिनंद
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