Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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अभिनन्दन
आयाम प्रवर अभिनंदन आनन्द ग्रन्थ ११
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[१] नमूं श्री पूज्यराज, तिरन तारण जहाज, सुधारेंगे सभी काज, महा यश धारी हैं । गम्भीर सागर सम, हटाते अज्ञान तम क्षमा, दया, उपशम, महाव्रतधारी हैं | क्रोध मान माया कन्द, लोभ का हटाके फंद बने निर्द्वन्द्व आप आत्म गुण धारी हैं । आया हूँ शरण तेरी, भवजल नैया मेरी पार करो "रंगमुनि" अर्ज गुजारी है |
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आचार्यानन्द--पञ्चक
[३] जन्म चिंचोड़ी पाया, हुलसा जी दुलराया, देवीचन्द पिता देख तुम्हें सुख पाया है । आनन्द आनन्द कन्द, गुगलिया वंश चन्द, ज्योति है अमन्द संग पुण्य भारी लाया है ॥ रतन गुरु संयोग दिया है निर्मल योग काटने को भवरोग संयम धन पाया है । शीतलता देख तेरी, चरणों में श्रद्धा मेरी, "रंगमुनि" पुनि पुनि मस्तक झुकाया है ॥
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श्री रंगमुनि जी [स्वर्गीय श्री सहस्रमल जी महाराज के सुशिष्य ]
[२]
आनन्द
वर्धमान श्रमण संघ, द्वितीय पट्टधर आप, आनन्द पद पाये पूज्यराज हैं । तारों बीच शशी जैसे, दिनकर तेज वैसे मुनि वृन्द माँहि ऐसे सोहे सिरताज हैं । शान्त, दान्त, करुणा के सागर समान श्रेष्ठ
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वाणी मीठी सुनते ही सुधरते काज हैं । छत्तीस गुणों के धारी, "रंगमुनि" बलिहारी पार करो बेड़ा तुम भवजल जहाज हैं ।।
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[४] महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब व राजस्थान, मालवा प्रदेश आप भ्रमण कराया है । क्षेत्र मोह त्याग के प्रतिपल रहे जाग अज्ञान हटाय ज्ञान चमकाया है ॥ भानु रहे संघ आलीशान, यही एक प्रण ठान,
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अपमान सब सहन कराया है। आनबान शान तेरी, एक्यता में जीत मेरी "रंगमुनि" संघ हित सर्वस्व लुटाया है ||
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[५]
हीरक जयन्ति काज, मिली है समाज आज, अभिनन्दन ग्रन्थराज योजना बनाई है । आचार्य सम्राट भारी, यशस्वी गुणों के धारी, पूज्यराज आनन्द की महिमा जग छाई है ॥ छः काया के प्रतिपाल, दूषण सारे ही टाल, मोह माया मद गाल, वैजयन्ती फहराई है । श्रद्धा के सुमन आज, सहस्रशिष्य पूज्यराज, "रंगमुनि" भक्ति युक्त माला पहनाई है ॥
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