Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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उनको वन्दना हमारी है
सवैया
शूरवीर जप-तप में सघीर,
काज ज्ञान रा भंडारी हैं ।
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श्री होरामुनि 'हिमकर' [ कवि तथा सरलमना सेवाभावी संत ]
संयम में
आतमा रा सारे
जांरो चोक्खो है आचार करते धर्म सुमति से लागी प्रीति मुगत थप वाणी मीठी है अनमोल बोली बोले तोले- तोल,
शास्त्र वांचे खोल खोल विज्ञ सु
विचारी है ।
रा प्रचार,
चारी हैं ।
कहे हीरा 'हिमकर' मेरे श्रद्धा के आधार, ऐसे मेरे शिरताज आनन्द को वंदना हमारी है ॥
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आनन्द-वचनामृत
D जो काम एक प्रेम भरे मधुर वचन से हो सकता है, वह अनेक दण्डप्रहार से भी नहीं हो सकता ।
हथौड़ी की कई चोटें जिस ताले को नहीं खोल सकतीं उसे छोटी-सी कुंजी ( चाबी) एक ही घुमाव में खोल देती है ।
[ जिसका जीवन पवित्र होगा, उसकी वाणी भी पवित्र होगी। जैसा अन्तर मन होता है वैसा ही वचन भी । कुएं में जैसा पानी होगा वैसा ही बाहर घड़े या बाल्टी में आयेगा, यही बात मन के सम्बन्ध में है, मन के कुएं में जैसे विचार होंगे, वाणी के घट में वैसा ही शब्दों का जल आयेगा ।
आचार्य प्रवयव अभिन्दन आआनन्दन ग्रन्थ
अभिनंदन
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AAM
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