Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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धर्म के प्रचार-प्रसार में आचार्य श्री आनन्दऋषि जी का योगदान
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करके छोटे-बड़े सभी को दर्शन और प्रवचन से लाभान्वित किया । इतना ही नहीं अपितु अपने इस परिभ्रमण के माध्यम से अनेक स्थानों पर जैनधर्म को प्रकाश में लाकर उसके प्रसार और प्रचार में योगदान दिया | आचार्य आनन्द ऋषि जी महाराज के जीवन वृत का अध्ययन करने पर ऐसा विदित होता है कि इनके माता-पिता भक्ति भावना से परिपूर्ण थे और जैनधर्म के प्रति यह उत्तम श्रद्धा उन्हें वंश परम्परा से प्राप्त हुई थी । बाल्यकाल से ही आचार्य आनन्द ऋषि जी पर भक्ति, ज्ञान और कर्म को पिथगा का अत्यधिक प्रभाव पड़ा हुआ था, जो कि आगे चलकर उनके जीवन में सही अर्थों में हमें दृष्टिगत होता है ।
आचार्य आनन्द ऋषि जी का जीवन हम लोगों के लिये अनुकरणीय और आचरणीय है । आचार्य जी ने अपने सम्पूर्ण जीवन में अपने भक्तिमार्ग, ज्ञानमार्ग और कर्ममार्ग के द्वारा हम लोगों को एक नवीन दृष्टि दी है। आचार्य श्री का जीवनवृत और कृतित्व हम लोगों को जीवन की वास्तविकता दिखाता है । इस प्रकाष पूर्ण वर्णित प्रसंगों से अच्छी प्रकार विदित होता है कि महान् आचार्य आनन्द ऋषि जी महाराज जी का जैनधर्म के प्रसार और प्रचार में क्या योगदान रहा है । अतः आचार्य आनन्द ऋषि महाराज को जैनधर्म का प्रकाश स्तम्भ, पथप्रदर्शक एवं धर्मप्रसार-प्रचार का योगदाता माना जाता है ।
आचार्य आनन्द ऋषि जी महाराज जी का हम सभी लोग उन का अभिनन्दन करते हुये उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे अपनी वाणी से, लेखनी से हमें आजन्म प्रेरणा देते रहें ।
आचार्य जी दीर्घायु प्राप्त कर अपने ज्ञान
मानव मात्र का कल्याण करेंगे एवं जैनधर्म के प्रचार और प्रसार में इसीप्रकार योगदान देते रहेंगे । ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है और आपके योगदान का ऐसा चमत्कार होगा कि आगामी पीढ़ी पर आपके कार्यों का ऐसा प्रभाव पड़ेगा कि जिससे आपके योगदान का प्रवाह कभी सूखने नहीं पायेगा और निरन्तर अबाध गति से विकसित होता रहेगा । जैनधर्म के प्रसार और प्रचार के कार्य में आचार्य आनन्द ऋषि महाराज जी का नाम सदा के लिये अमर हो गया है। उनके योगदान का जैनसमाज सदा ऋणी रहेगा ।
आनन्द-वचनामृत
0 नहि तन तेरा नहीं धन तेरा, तेरा तो है केवल मन !
इस मन को मांज लिया जिसने, उसने ही पाया संजीवन !
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[] साधन जब तक आवश्यक है तभी तक उपयोगी है।
सीढ़ियाँ महल में चढ़ने तक उपयोगी हैं, महल में पहुँचने के बाद उनका क्या उपयोग ?
नौका नदी पार पहुँचने तक उपयोगी है, किनारे पहुँचकर नौका को छोड़ना होगा ।
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सर्दी में कम्बल को छाती से चिपका कर रखते हैं, पर गर्मी आते ही उसे खूटी पर लटका देते हैं ।
इसी प्रकार साधन में शुभ कर्म (पुण्य) की उपयोगिता समझनी चाहिए ।
आयार्यप्रवर अभिनंदन आआनन्द अन्य
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