Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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NIVाग
- मुनि रमेशकुमार सिद्धान्ताचार्य' [स्थानकवासी जैन समाज के प्रबुद्ध लेखक व कवि संत]
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आचार्य-अर्चना
आचार्य श्री का अभिनन्दन करते हर्षित हो शतवार । चरण-स्पर्श से जीवन बनता ज्योतिर्मय सुन्दर साकार ॥ महामहिम उपकारी पूज्यवर, जीवन जिनका दे सन्देश । धवल धरा पर पूजित होता, वही सुगुण को धरे हमेश ॥ आध्यात्मिक जीवन महक रहा है, अनुभव क्षीर का सागर है। श्रुत रत्नों से चमक दमकता, मानो शान्त सुधाकर है। सम्यग्दर्शन के आराधक शुद्ध ज्ञान के साधक हैं। करणी-कथनी शुद्ध आप को मोक्ष मार्ग संसाधक हैं। स्याद्वाद् सिद्धान्तप्ररूपक शासन की तुम शान हो । धर्मदिवाकर ज्ञान उजागर भव्यों के भगवान हो । समता का तुम पाठ पढ़ाते, जन-जन को हे पूज्यप्रवर ! जैनधर्म-भूषण कहलाते, सरल मना हो ज्ञानेश्वर । अखिल विश्व परिवार आपका आप परम उपकारी हैं। वाणी से अमृत झरता है दैदीप्यमान अवतारी हैं। समाज वाटिका सुरभित होती आनन्द सुरभि को पा करके । सुमन-अंजलि अर्पित करता 'मुनि रमेश' हर्षा करके ।
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