Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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आचार्यप्रवभिन्न श्रीआनन्दग्रन्थ श्रीआनन्दप्रसन्न
आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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(४) झूठ बतावत सांच समोकर
जहर मिलाय के देत हैं गूल । कहत तिलोक करे मन को वश,
जाय जमा वश भूठ के सूल। -पूज्यपाद श्री तिलोकऋपिजी, पृष्ठ २२४ (यह पृष्ठ संख्या आनन्द प्रवचन भाग तीन की है।)
मधुर शब्दों में बोला गया झूठ ठीक वैसा ही कहलाता है जैसे गुड़ के अन्दर विष मिलाकर किसी को दे दिया जाय । इसीलिए प्रत्येक मानव को अपने मन पर संयम रखते हुए असत्य भाषण की प्रवृत्ति का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। असत्य भाषी अविश्वास का पात्र बनता है। प्रवचनों की तीसरी विशेषता है कि प्रतिपाद्य विषय की उत्कृष्टता को प्रदर्शित करने के लिए इसके विपरीत तत्त्व को दोषपूर्ण बताना । जैसा कि 'सत्य का अपूर्व बल' नामक प्रवचन में दिखाया गया है। मानवता की गरिमा में दानवता को अधम बताना, आत्म-शुद्धि की सराहना में विषय-वासना की मलिनता को चित्रित करना आदि ।
__ अपने कथ्य के समर्थन में कथाओं का प्रयोग करना यह पूज्य आचार्य के प्रवचनों की चौथी विशेषता है । ये कथाएँ एक ओर सरसता-रोचकता लाती हैं और दूसरी ओर पाठक एवं श्रोता को विषय के अनुशीलन में बड़ी सहायक बनती हैं। यथा तत्त्वज्ञ सेठ (पृ० १७८) महान त्याग (पृ० ७६) सियार-ऊँट की कथा (पृ० १११), सच्चा साधुत्व (पृ० २३७) ज्ञानवृद्धि में रोक, (पृ० २५०) आदि ।
(यह पृष्ठ संख्या आनन्द प्रवचन भाग तीन की है)।
पांचवीं विशेषता यह है कि यथार्थवाद के धरातल पर आदर्शवाद की स्थापना । “समय का मूल्य आँको" नामक प्रवचन में आचार्यश्री ने सबसे पहले मानव की इस नैसर्गिक प्रवृत्ति को दिखाया है कि वह बुढ़ापे में आकर कुछ करने की आवश्यकता समझता है तथा यौवन में विषयासक्ति के प्रति वह लगाव बढ़ाता रहता है । युवावस्था क्षणिक है, जैसा कि एक शायर ने बताया है
रहती है कब बहारे, जवानी तमाम उम्र मानिन्द बूये गुल, इधर आई उधर गई।
-पृ० २६२ इसी तरह इंसान की कमजोरियों को बताते हुए आचार्यश्री फिर चेतावनी देते हुए एक विशिष्ट आदर्शवाद को सन्मुख रखते हैं। यथा-समय पर थोड़ा-सा प्रयत्न भी आगे की बहत-सी परेशानियों को बचाता है, आदि।
इन प्रवचनों की छठवीं विशेषता यह है कि आचार्यप्रवर ने लोक-संस्कृति के प्रति पर्याप्त अनुराग बताया है। यह संस्कृति श्रमण-संस्कृति की सहचरी है। छोटी झोंपड़ी (पृ. २३), पर-उपकारी तरु (पृ० ३७), मेह की उदारता (पृ० ४४) आदि । (यह पृष्ठ संख्या आनन्द प्रवचन भाग १ की है)। इसी प्रकार “गोबर इकट्ठा करने वाला धनवान" (पृ० २४), मृत सर्प के स्थान पर रत्नहार (पृ० २६), खेतों में पानी पहुंचा रहा हूँ" (पृ०७७), सभी यात्री हैं (पृ० १९४), ब्रह्माण्ड की परिक्रमा (पृ० ८६), महान् त्याग (पृ० ७६), कोई जागीर दे दो (पृ० ३८) आदि लोककथाएँ लोक-जीवन की अनुभूतियों को प्रकाशित करने वाली हैं। ये लोक-संस्कृति की धमनियाँ हैं।
सातवीं विशेषता है व्यंग्यों का प्रयोग तथा तीखा प्रहार । इस विशेषता ने प्रवचनों को अधिक प्रभावोत्पादक बना दिया है। यह वैशिष्ट्य यथावसर कई प्रवचनों में परिलक्षित होता है।
प्रवाह-पूर्ण एवं सरस शैली प्रवचनों की आठवीं विशेषता है। जो प्रत्येक प्रवचन में देखी जा सकती है।
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