Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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साध्वी सुशीलकुमारी [ विदुषी श्री अमृतकुवरजी महासनी का मुशिष्या ]
श्रद्धा-सुमन
"श्रमण संघ रूप प्रदीप में, स्नेह-श्रद्धा के साज ।
ज्योति प्रकट हई आनन्द की, धर्मोन्नति के काज ॥" श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमणसंघ को यदि मुकुट की उपमा दी जाय तो हमारे परम श्रद्धेय आचार्यश्री जी उस मुकट के दैदीप्यमान तेजस्वी मणि रत्न है। आचार्यश्री जी की अलौकिक प्रतिभा और अप्रतिम व्यक्तित्व की धवल आभा ने केवल श्रमण संघ को ही नहीं, अपितु समस्त जैन जगत् को भी धवलित किया है । समाज में नयी चेतना, नयी प्रेरणा और नया उत्साह निर्माण किया है। श्रमण संघ का सद्भाग्य है कि उन्हें प्रथम आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज और द्वितीय पट्टधर श्री आनन्द ऋषिजी म. प्राप्त हए हैं।" आत्मा+आनन्द" इन दोनों का कितना अच्छा सुयोग बना है ? आत्मानन्द की साधना यही जीवन की सफल साधना है। यह एक आध्यात्मिक संकेत है, जो जन-जन को जागृत कर रहा है।
आप महाराष्ट्र के उज्ज्वल-समुज्ज्वल मोती, श्रमण संघ की प्रज्ज्वलित ज्योति, विश्व की महान् विभूति और त्याग-तप की साकार मूर्ति है । सूरज की तेजस्विता, शशि की शीतलता, सागर की गंभीरता धरती की सहिष्णुता, कमल की निलिप्तता और सुमेरू की निश्चलता आदि सद्गुण आप जैसे चारित्रशील महात्मा में स्थान पाकर मानो कृतार्थ हो गये हैं। आपकी विनत-विनम्र आकृति, सरल-सहज प्रकृति और निःस्वार्थ कृति चतुर्विध संघ को अपनी ओर आकृष्ट कर रही है। आपके ज्ञान की गरिमा जीवन की मधुरिमा और गुणों की महिमा अद्वितीय है। जिसका वर्णन करने के लिए शत-शत जिह्वाएँ भी असमर्थ हैं।
वैज्ञानिकों का कथन है कि हर एक मनुष्य के विचारानुसार उनके आस-पास एक तेजोवलय होता है और उसका प्रभाव निकटस्थ व्यक्ति पर पड़े बिना नहीं रहता । इस प्रमाण से सिद्ध होता है कि आपके चरण में पहुंचने वाले व्यक्ति के जीवन में जो परिवर्तन आता है तथा जो धर्म भावना प्रकट होती है, वह सब आपके दिव्य-भव्य निर्मल तेजोवलय का ही प्रताप है। आपके जीवन रूपी घट में से अवतरित मानवता रूपी मधु झरता है। जिसका पान करने के लिए भक्त रूप भ्रमरों के समूह आपके चारों ओर सदैव मंडराते हुए रहते हैं।
आपने जैन-अजैन सभी तत्वों का गहन अध्ययन किया, फिर भी आप सत्याग्रही रहे । ज्ञान का गर्व आपमें लेशमात्र भी दिखाई नहीं दिया। भगवान महावीर का तत्त्व आपके अणु-अणु में व्याप्त है। उन तत्त्वों के प्रचार-प्रसार के लिए साहित्य-सर्जन तथा पंडितों को स्वयं तैयार करते हैं और जनता को भी मार्ग दर्शन करते रहते हैं। "प्राकृत भाषा प्रचार समिति" वर्तमान में जो कार्य कर रही है उसमें आपका वही हेतु है कि हमारे ज्योति-पुञ्ज विश्ववंद्य भगवान महावीर का अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रहवाद सिद्धान्त विश्व के कोने-कोने तक पहुंचे। उसके लिए अनेक प्राकृत भाषा के विद्वानों
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