Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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सरबारमल चौपड़ा [मंत्री--श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, जयपुर]
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प्राचार्य प्रवर का अभिनन्दन
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__ आत्मिक उन्नति का पथ प्रशस्त करते हुए प्राणिमात्र की कल्याण-कामना में सरिता की सरस धारा के समान सदा प्रवाहमान होकर सुख-शांति देने वाले सन्तों का जीवन स्वर्गापम विभूति है। आचार्य सम्राट इस सनातन सत्य की साक्षात् प्रतिमुर्ति है।
सरल, सरस और सुन्दर मानस, तर्कप्रवण प्रज्ञा, मदु मधुर और मनोहरवाणी---यह त्रियोग जिस तेजस्वी व्यक्तित्व में एकरस हो गये हैं, वह है आचार्य सम्राट श्री १००८ श्री आनन्दऋषि जी महाराज ।
जीवन के प्रभात में गीतकार, जीवन के सौरभमय ऋतुराज में कोमल कवि तथा जीवन के तीसरे पहर में दार्शनिक, चिन्तक, समाज संगठक तथा जन-चेतना के लोक-प्रिय अधिनेता।
मझला और भरापूरा शरीर, सुषमामय श्यामवर्ण, मधुर मुस्कान, विशाल भाल, चौड़ा वक्षःस्थल, सरल, विरल, धवल केश, तेजोमय नयन, मनोभावों को परखने की सुदृढ़ परख आचार्यश्री का समग्र व्यक्तित्व है।
नूतन और पुरातन विचारधाराओं के समन्वित स्वरूप, सामाजिक क्रांति के सूत्रधार, संयोजक और व्याख्याता होते हुए संघ हेतु सर्वदा स्नेह, सहानुभूति, सहयोग और क्षमता के सम्पूट के साधक, आचार्यश्री अपने जैसे आप हैं।
"सच्चं खु भगवं' अर्थात् सत्य साक्षात् शिव है, वह अनन्त और अनादि है। वह अपरिमित और असीमित है। उसे सीमित और परिमित कहना भ्रान्ति है। उसे बाँधना, संघर्ष को बुलाना है। उसकी उपासना धर्म है। उसका साधक शाश्वत शिव यानी भगवान है। आचार्य सम्राट इसी विश्वास, आस्था और विराट वैभव के प्रतीक हैं।
"मुक्तिः क्रीडति हस्तयोर्बहु विधं सिद्धं मनोवांछितम्' अर्थात् जो वीतराग मार्ग का यात्री है, मुक्ति अर्थात् मोक्ष उसके किसलय से कोमल करों में खेलती है। उसके संकल्प सत् और सुदृढ़ होते हैं। वह पूर्ण होगा । आत्मा श्रद्धामय है, श्रद्धा आत्मा का परिमार्जित और परिष्कृत रूप है आचार्यप्रवर ऐसे ही महामानव है । वे कहा करते हैं "विचार और विकार मानव मन की उपज है। विकार पतन और विचार उत्थान का द्योतक है, दूसरों के प्रति द्वेष की भावना मानव मन का विकार है। विकार को विचार में बदलने की कला जैनत्व है। जन-मानस में दिव्य विचारों का प्रादुर्भाव हो। जैन संत इस भावना से प्रेरित हो आत्म बोधका विपुल स्रोत प्रवाहित करते हैं। आचार्य सम्राट इस अर्थ में एक महान चमत्कार है। उनकी वाणी का चमत्कार कलित कण्ठों से व्यक्त नहीं होता, उसकी अभिव्यक्ति उनके जीवन की शीलता है। आनन्दऋषि जी महाराज का इस सत्य से साक्षात्कार है।
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