Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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श्रद्धा-सुमन
का लक्ष्य इस कार्य की ओर केन्द्रित कर रहे हैं। हाईस्कूल और कालेज में भी प्राकृत भाषा के क्लास शुरू कराने के लिए आप सतत प्रयत्नशील हैं ।
आप प्रभावक प्रवक्ता है। जिस समय आपकी वाणी सरिता प्रवाहित होती है उस समय श्रोतावृन्द के रोम-रोम विकसित हो उठते हैं। आपकी प्रशांत मुख मुद्रा से हर एक व्यक्ति प्रभावित हो जाता है आपकी प्रवचन शैली सरल-सरस सुमधुर और हृदयस्पर्शी है। विविध भाषाओं के ज्ञाता होने पर भी आपकी भाषा में शब्दों का आडम्बर तनिक भी नहीं पाया जाता "सहज बोलणे हाचि उपदेश" संत तुकाराम महाराज की उक्ति आपके जीवन में पूर्णरूपेण घटित होती है। आपके शब्द सदैव नपे-तुले और माधुर्य सने हुए होते हैं तथा विवेक की सरानी पर चढ़कर ही बाहर निकलते हैं। अन्तःकरण की शुद्धता का प्रभाव वाणी पर पड़े बिना नहीं रहता है। अतः आपको वाचासिद्धि भी प्राप्त है ।
सेवा आपका मूल मंत्र बना हुआ है। "जन सेवा यही जनार्दन की सेवा है" इस सूत्र के अनुसार आपने समाज की विविध प्रकार से सेवा की है । अपने जीवन का कण-कण और क्षण-क्षण परोपकार के लिए समर्पित किया है । यह उक्ति सत्य है कि " परोपकाराय सतां विभूतयः " । आराम को आप कभी जीवन में स्थान नहीं देते । आप सतत अध्ययन-अध्यापन तथा समाज कार्य में रत रहते हैं । एक समय भी व्यर्थ नहीं गंवाते । विविध क्षेत्रों में संचालित पुस्तकालय छात्रालय, सिद्धान्तशाला, पारमार्थिक संस्थाएँ आदि आपकी सेवा की प्रतीक हैं। आपने अनेक निराश्रित बच्चों को आधार देकर स्वावलंबी बनाने के लिए सहयोग दिया है। "स्वहिताय" के साथ-साथ "सर्वहिताय" की विशाल व्यापक विचार धारा को लेकर ही आप वृद्धावस्था में भी जवानी का जोश लिए हुए पाद विहार करके अनेक क्षेत्रों को पावन कर रहे हैं।
जहां भी आप जाते हैं वहां की समाज का आप सूक्ष्म निरीक्षण-परीक्षण करते हैं। समाज की विषम और अवनत दशा देखकर आपका दिल द्रवित हो उठता है। उसे दूर करने के लिए ही "महाराष्ट्र एकता संप" आदि योजनाएं बनाई जा रही है। आपकी एक ही आवाज है
"United we stand and divided we fall"
संगठन यह हमारी उन्नति है और अवनति हमारी फूट है । संगठन की शक्ति बहुत बड़ी है । उसके अभाव में समाज अपनी प्रगति नहीं कर सकेगा। क्योंकि "संघे शक्तिः कलौ युगे । समाज का सर्वागीण विकास हो यही आपकी उत्कट भावना है। उसे कार्यान्वित करना, यह समाज का परम कर्त्तव्य है। समाज के प्रति आपकी आत्मीयता तथा दयालुता ही समाज को संगठित करने वाली एक स्वर्ण श्रृंखला है ।
इस प्रकार सर्वतोमुखी प्रतिभा सम्पन्न - प्रशांतमूति, आचारनिष्ठ, न्यायप्रिय श्री आचार्यदेव अपनी गुण गरिमा से समस्त समाज के श्रद्धा केन्द्र बने हुए हैं। समाज उन्हें भगवान तुल्य मानता है । ऐसे आचार्य पद को विभूषित करने वाले महान संत का नेतृत्व पाकर हमारे श्रमण संघ का गौरव उसी में है कि "हम सब एक सूरज की ज्योति हैं" इस सूत्र को जीवन बद्ध करके और उनके आदेश का पालन करके जिन शासन की तथा जैन धर्म की अभिवृद्धि करें। हमारे आचार्यश्री जी युग-युग तक ज्ञान की उज्ज्वल किरणें फैलाते रहे इसी शुभ कामना के साथ उनके परम-पुनीत पद-कमलों में "श्रद्धा-सुमन" समर्पित करती हूँ ।
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मेरी हृदय-वाटिका में खिली, किरण कृपा की एक । आनंद की हरियाली छायी, और "श्रद्धा-सुमन" खिले अनेक ।। बस उसी क्षण साकार बनी, यह दिव्य प्रतिभा अंतः स्थल में । सोचा ये श्रद्धा सुमन, समर्पित कर समर्पित कर दूँ उन पद कमल में ।।
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आयाय प्रवरत अभिनंदन श्री
आचार्य प्रव20 श्री आनन्द ऋ
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ग्रन्थ १
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