Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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श्रद्धा के दो फूल का मिलना बहुत ही कठिन है । हमें भी आचार्य श्री जी की पवित्र छत्रछाया में रहकर सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । आचार्यश्री जी से जब भी हम मिले या कभी मिलते हैं तो हमको आचार्यश्री जी अपनत्व की भावना से ही मिलते हुए नजर आये ।
आचार्यश्री जी के जीवन में जहाँ महासागर जैसी गहराई है, वहाँ पर्वतराज हिमालय जैसी ऊँचाई भी है । आचार्यश्री जी सत्य के पारखी हैं। वे व्यक्ति के नहीं, परन्तु गुणों के पुजारी हैं । जब एक छोटेसे-छोटा सन्त भी सही सलाह इनके पवित्र चरणों में रखता है तो उसकी सलाह को बड़े प्रेम से और सहानुभूति पूर्वक सुनते हैं और समय आने पर उस सही सलाह को स्वीकार भी करते हैं । यह इनके जीवन की बहुत बड़ी विशेषता है ।
आचार्यश्री जी को अपने जीवन में किसी भी प्रकार के विचारों का तनाव पसन्द नहीं है । जब भी वे बोलते हैं, उनके जीवन का ऐसा मधुर मिठास इनकी वाणी से बिखरता है कि दूसरे के तनाव के विचारों के तन्तु धीरे-धीरे अपने आप ही ढीले होते हुए चले जाते हैं । दूसरे के जीवन में असर करने वाली यह जीवन की मधुर मिठास कोई वैसे ही और एक दम ही नहीं मिल जाती। इस मिठास के पीछे साधक की बड़ी साधनाओं के रस का वेग होता है। अगर आप जीवन की उस मिठास को प्राप्त करना चाहते हैं तो वह सद्विचारों का मिठास निरन्तर चिन्तन और मनन के अभ्यास के द्वारा ही मिल सकता है । उस मिठास का अति शीघ्र या देर में मिलना यह तो आपकी शक्ति और पुरुषार्थ की गति पर अवलम्बित है ।
कोई भी धर्म- नेता जब समाज के उत्थान के लिए अपने जीवन में संगठन का मधुर रूप लेकर आगे बढ़ता है तो उस वक्त जिन व्यक्तियों का संगठन से प्यार होता है, जिनकी नजरों में संगठन की कीमत होती है उनकी ओर से तो उस धर्म-नेता को सही समर्थन के रूप में मधुर भावनाओं का मिठास ही मिलता है परन्तु जिन व्यक्तियों को संगठन के नाम से गहरी चिढ़ है, उनकी ओर से विरोधी भावनाओं के रूप में तीखे कांटे ही मिलते हैं ।
जो भी व्यक्ति आचार्यश्री जी के पास चाहे विरोधी भावनाओं का पुलन्दा लेकर क्यों न आये, फिर भी उसको आचार्यश्री जी की ओर से हृदय से आदर-सम्मान ही मिलता है । परन्तु आज व्यक्ति कुछ ऐसा गुटप्रिय बनता जा रहा है, मन इतना छोटा हो चुका है कि दूसरे के विचारों को सुनने या पढ़ने के लिए या तो वह अपने दिमाग के झरोखों को खोलता ही नहीं और यदि कभी खोलता भी है तो दूसरों पर अपने कठोर व्यवहार के पत्थर फेंकता है। यह जीवन में स्वयं इन्सान अपने लिए क्षुद्र विचारों द्वारा बनाई हुई परिभाषा है । यह परिभाषा छोटे विचारों की प्रतीक है ।
जो ईंटें आपस में मिली हुई हैं, अगर आप अपनी शक्ति द्वारा उनको इधर-उधर बिखेरना चाहते हैं तो यह आप द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग हो रहा है। आपके इस कार्य द्वारा समाज का कभी भी भला नहीं हो सकता । अगर आप इधर-उधर बिखरी हुई ईंटों को अपने पुरुषार्थ के द्वारा इकट्ठा करके उनको आपस में जोड़ने का काम कर रहे हैं तो यह आप द्वारा अपनी शक्ति का सही उपयोग हो रहा है ।
श्रमणसंघ के रूप में हमारे सामने एक सुन्दर और मजबूत संगठन है । अगर आप इस संगठन को कमजोर करने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग कर रहे हैं तो इसका अर्थ है, आप भविष्य के लिए, अपने जीवन के लिए और समाज के संगठन के लिए भी जहर में बुझे हुए नुकीले कांटों के बीज बो रहे हैं । चाहे कोई बड़ा साधक हो और चाहे कोई छोटा साधक हो, समस्याएं सबके जीवन में आती हैं । परन्तु आने वाली समस्याओं की उलझनों को सुलझाने का भी तो, एक अनोखा ढंग और सही तरीका होता है । जो साधक अपने आप में सही रूप में जागृत है । जिसकी भावनाओं में समाज की भलाई के
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