Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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आचार्यप्रवचनआचार्यप्रसार
0 श्री कस्तूर मुनि
[सेवा भारी संत]
श्रद्धा के दो फूल
परम श्रद्धेय आचार्यश्री आनन्द ऋषि जी महाराज हमारी समाज में एक महान प्रकाश स्थम्भ के समान है। जिनका हृदय विशाल है और विचारों में व्यापकता है। इनके जीवन में रहा हुआ उत्साह और कार्य कुशलता प्रत्येक साधक को नई स्फूर्ति देने वाला है। आचार्यश्री जी का जीवन इतना गम्भीर और प्रभावशाली है कि वह शीघ्र ही जन साधारण की भक्ति और श्रद्धा का पात्र बन जाता है।
महापुरुषों के जीवन में कुछ ऐसी विशेषताएं होती हैं कि वे जहाँ पर भी, जिस ओर भी, जब भी समाज उत्थान के नये विचार अपने मन में लेकर जाते हैं, तो वे सब कार्य तो पूर्ण हो ही जाते हैं परन्तु बहुत से अचिन्त्य कार्य भी अपने आप ही पूर्ण होते जाते हैं।
___ आचार्यश्री जी हमेशा ही हीन विचारों की क्षुद्र ग्रन्थियों से अपने आपको दूर ही रखते हैं जो क्लेश बढ़ाने वाली होती हैं। उनके बोलने का मधुर तरीका उनका अपना ही है। उनके जीवन के प्रत्येक व्यवहार से कोमलता और सरलता का मधुर मिठास ही बिखरता हुआ दिखाई देता है। आचार्यश्री जी एक ऐसे कर्मठ साधक के रूप में हैं जिन्होंने पीछे न हटकर अपनी मंजिल के लिए आगे बढ़ना ही सीखा है।
जीवन में हरेक तरह की बाधाओं से हँसते-हँसते जूझते रहना और फिर उनसे घबरा कर पीछे न हटकर आगे ही बढ़ते जाना, यह कोई साधारण व्यक्ति का काम नहीं। आचार्यश्री जी उस साधक के समान हैं, जिसके जीवन में अनेकों प्रतिकूल उलझनें आती हैं, परन्तु वह घबराता नहीं और उनमें अपने आपको उलझाता भी नहीं। और उनको सुलझाते हुए तब तक आगे ही बढ़ता जाता है, जब तक कि उसको अपनी साधना की मंजिल का सहा किनारा नहीं मिल जाता।
आचार्यश्री जी वह फूल है, जिसको जब भी देखा, या देखते हैं तो काँटों के मध्य भी महकता हुआ ही नजर आया । फूल अपने आपको काँटों से घिरा हुआ देखकर भयभीत नहीं होता, परन्तु अपने जीवन की भीनी-भीनी मधुर खुशबू बिखेरता ही रहता है ।
संघर्ष के बाद हर्ष की बेला आया करती है। घड़ा भी अपने जीवन में अनेकों संघर्षों से टक्कर लेता है, तभी वह एक दिन दूसरों की नजरों में आदर और सम्मान का पात्र बनता है। आचार्यश्री जी के जीवन में परिषह के रूप में अनेकों बाधायें आयीं और आती रहती हैं। परन्तु वे अपने मनोबल के सहारे आगे ही बढ़ते जाते हैं। हमने कभी भी कष्टों में उनका मनोबल मुरझाया हुआ नहीं देखा ।
आचार्यश्री जी खुद अपने लिए जितने कठोर हैं तो दूसरों के लिए उतने ही कोमल भी हैं। इस | संसार में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हृदय की सरलता तो मिल सकती है परन्तु सब जगह मन की कोमलता
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