Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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आचार्य प्रदभन्द श्री आनन्द 382448
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आचार्य प्रहर
आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषि: व्यक्तित्व एवं कृतित्व
ग्रन्थर
[ ४ ] द्वीप बानिधि चन्द्र, जनम जसा से लीध
दूध को दीपाय दियो, सित्तर उन्नीस में ।
भागवती जैन दीक्षा, शिक्षा युत धार कर
पाय गये परीक्षा में, नम्बर इक्कीस में । मधुर गिरा पैं अति, मुदित मानव वृन्द
राजा महाराजा
नाम को अंकित कियो, सरस कवीश में । सेठ, अनेकों विवुध आय प्रेम से प्रेरित होय, नमत सुरीश में ॥ [ ५ ]
प्रथम गणीश निज, गच्छ में बने हैं आप
पुनि षट पट बीच, महान गणीश में ।
वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमणों में
भये हैं प्रधान मन्त्री, तन्त्री के सूरीश में ।
अजमीड़ गढ़ मध्य, संघ के सम्राट बने
हिज होलीनेस हद बने हैं बुध्धीश में ।
जयवन्त रहो लहो जस, सारे विश्व मांझ
बुध शिष्य मिश्री भणे, वचन अशीश में ||
कुण्डलियाँ [६]
लता दया लवजी ऋषी, रोपी जैन समाज । सींची ऋषी त्रिलोक सी, रत्न जमायो साज । रत्न जमायो साज, आज आनन्द वर्षायो । सुज्ञ जनों ने एह, सुर तरु मन भायो । श्रमण संघ में जो फूले फले
अहा
यह
मिले, भाग्य सराऊ मैं कित्ता । चौगुणी, संघ संगठन की लत्ता ॥ [ ७ ]
आनन्द चहै आखी दुनि, आनन्द जीवन सार । आनन्द विन नर सुर पशु बन जाते बेकार | वन जाते बेकार, फेरे सब माला मन से । दान पुन्य सव करें, मिले आनन्द जो जिनसे ।
जिन शिव ही बुध राम का, प्रेम से करते वंदन । याते हम भी करे ऋषी, अभिनन्दन ||
आनन्द
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