Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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आचार्यसम्राट : एक जीवन-दर्शन
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ALES
___ भारतीय संस्कृति के आदर्श संत-संत जीवन अपने लिए नहीं वरन दूसरों के लिए होता है । वह अपने सुख और आराम की चिंता न कर सदा परहित में दत्तचित्त रहता है। वह प्रकृति की तरह उदार भाव से बिना मांगे विश्व को सुख तथा शांति का मार्ग दिखलाता है तथा मेघ की तरह सर्वत्र पुनीत सहस्र धाराएँ बरसाता रहता है। श्रद्धेय आचार्यश्री भी भारतीय संस्कृति के महान संत हैं। भारत में सदा ही ऐसे संतों का महत्त्व रहा है तथा आज भी संतों की कमी नहीं है, परन्तु आचार्यश्री जैसी साधना की आभा बहुत कम संतों में पाई जाती है। वास्तव में पहाड़ एवं पहाड़ी की प्रत्येक चट्टान में माणिक नहीं मिलते, इसी तरह सच्चे साधु भी जहाँ-तहाँ नहीं मिलते।
देश और समाज के ऐसे कीर्तिस्तम्भ स्वरूप आचार्यश्री अपने मोहक उपदेशों से सभी को सम्यक् ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र से लाभान्वित करते हुये दीर्घायु को प्राप्त हों, ऐसी मेरी भावना है। साथ ही आपकी महान आचारगरिमा और विद्वत्ता के प्रति असीम श्रद्धा व्यक्त करते हुए अपनी कामनाओं के निष्कम्प दीप जलाकर हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
माग
आनन्द-वचनामृत
आचार्यों ने श्रावक शब्द का कितना सुन्दर विवेचन किया है--
श्रा-अर्थात् श्रद्धाशील व-अर्थात् विवेकशील क-अर्थात् कर्मशील
श्रद्धा, विवेक और कर्म जिसमें हो, वही वास्तव में श्रावक है।
C
उपासक शब्द बताता है कि जिसमें ये चार गुण हों, वही वास्तव में उपासक कहलाने का अधिकारी है
SORIGIN
उ-अर्थात् उद्यम प--अर्थात् पवित्रता स-अर्थात् समता क-अर्थात् कोमलता
श्रमण में निम्न तीन गुण होना आवश्यक हैं
श्र-श्रद्धाबल म-मंदकषाय ण-नम्रवृत्ति
Annar...
.----LAAAAAAAA
AAAA
A AAAminuraana
:ACAAAAA..Leav
GOOD
आगारप्रवर अभिमानार्यप्रवर अभय श्रीआनन्द
श्रीआनन्दमन्थन
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