Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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आचार्यप्रवर आभाचार्यप्रवभि आनन्न्
श्रीआनन्दा ग्रन्थ आचार्यप्रवर श्री आनन्द ऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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२०२५ मालेरकोटला (पंजाब) ५८ २०२८ कुशालपुरा (आनन्दनगर देहली (सब्जी मंडी)
मारवाड़) ५७ २०२७ बड़ौत (उत्तर प्रदेश) ५६ २०२६ सुजालपुर (म० प्र०)
६० ३०३० नागपुर (विदर्भ) चातुर्मासों की इस तालिका से पाठकगण सहज ही समझ सकते हैं कि हमारे आचार्य सम्राट ने अनेकानेक कठिनाइयों का सामना करते हुए जनहित की भावना से सुदुर प्रान्तों में विहरण किया तथा अपनी अमृतमय वाणी की वर्षा से भव्य जनों के संतप्त हृदयों को शीतलता प्रदान की। ऐसे महामानवों की छत्रछाया चिरकाल संघ पर बनी रहे। यही जन-जन की हार्दिक कामना है।
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तुम सलामत रहो हजार वर्ष !
0 राजेन्द्रमुनि शास्त्री, काव्यतीर्थ [जैन आगम व दर्शन के विशेष अभ्यासी]
चार्य प्रवर की महत्ता, व गौरव गरिमा को आलोकित करने के लिए मेरी छोटी सी मशाल की
आवश्यकता नहीं है, न मैं उन महान्-भाग्यशालियों में से हूँ जो साधिकार कह सकूँ कि मैं उन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ, हाँ मैंने उनके दर्शन सर्वप्रथम सन् १९६४ में रायला गाँव में किये थे, जहाँ मैं अपनी माता राजवैद्या धायकुंवर दोषी के साथ रहता था। आपश्री वहाँ पर कपास फैक्टरी में ठहरे थे। उसके पश्चात् अजमेर शिखर सम्मेलन में भी मैं माता जी के साथ दर्शन के लिए गया था।
मैंने सन् १९६५ में पूज्य गुरुदेव राजस्थानकेसरी पुष्कर मुनि जी महाराज के पास दीक्षा ग्रहण की। दर्शन की उत्कट कामना होने पर भी विभिन्न दिशाओं में विहार होने से आपश्री के दर्शन न हो सके । पूज्य गुरुदेव के साथ बम्बई से उग्र विहार कर सन् १९७२ में हम साण्डेराव सम्मेलन में पहुँचे । वहाँ पर आपश्री पधारे, आपश्री के दर्शनों का सौभाग्य मिला । आपश्री के दर्शन कर मुझे असीम आनन्द की अनुभूति हुई।
मैंने अनुभव किया-आचार्यश्री बालक मुनियों के साथ बातचीत करने में नहीं कतराते हैं, उन्होंने मेरे से पूछा-कहाँ तक अध्ययन किया है ? मैंने सकुचाते हुए कहा 'काव्यतीर्थ', भारतीय विद्या भवन की तथा पाथर्डी की शास्त्री परीक्षाएँ दी हैं, और इस समय 'साहित्यरत्न' का अध्ययन कर रहा है, तो उन्होंने सिर पर हाथ फेरते हुये कहा-खूब अध्ययन करो, अध्ययन से जीवन चमकेगा, विचारों में निखार आयेगा।
मुझे लगा आचार्य श्री वस्तुतः एक ज्योति-स्तम्भ हैं। महान वही है जो छोटों से भी प्यार करता है। मेरी हार्दिक कामना है।
"तुम सलामत रहो हजार वर्ष ! हर वर्ष के दिन हों पचास हजार !!"
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