Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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अभिनन्दन-बेला आई
-~-गणेश मुनि शास्त्री, साहित्यरत्न गीतकार, कवि, वक्ता तथा अनेक उच्चकोटि की पुस्तकों के लेखक
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लिया जन्म आचार्यप्रवर ने वह पावन है, महाराष्ट्र का ग्राम-चिंचोड़ी, तीर्थधाम है। युगपुरुषों का अभिनन्दन करती जो धरती, उनका जीवन सफल और वह पूर्णकाम है ॥ बाल्यकाल से ही मेधावी, शान्तचित्त हो, धुन के धनी निरन्तर निज कर्तव्य-परायण । शुभ कर्मों का उदय स्वयं ही धो देता है, गुरुतर जन्मान्तर के कलुषित पापों का व्रण ॥ संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी, प्राकृत, गुजराती, तुम हो विविध भाव-भाषाओं के अभ्यासी । व्याख्याता, रचयिता, स्वयं आगम-ग्रन्थों के, ज्ञानसाधना सचमुच बनी आपकी दासी ॥ सरस्वती के समुपासक-संस्थापक यतिवर, जैनागमनिष्णात ! काव्यरस के अनुरागी। भव्यमूर्ति, विद्याधर, किन्नर कहूँ आपको, विचर रहे हैं वसुधा पर बन वैभव-त्यागी ॥ भ्रमण आपने पैदल ही कर भारत भर का, जन-जन में नैतिकता का देकर उद्बोधन । मिथ्यावादों का प्रतिवाद किया निर्भय हो, दुर्जन जन का भी जीता सज्जनता से मन ॥ जन्मदिवस के अवसर पर शत-शत वन्दन हो, जैनधर्म के तत्त्वों के सच्चे आराधक। पद वन्दन के योग्य आपका अभिनन्दन हो, व्रती, तपस्वी, प्रगति तन्त्र के तुम श्रम-साधक ॥
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