Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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षट्खंडागमकी प्रस्तावना
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पुस्तक ३, पृ. ३० राशिगत अल्पबहुत्व निरूपण में जो अभव्योंसे सिद्धकालका गुणकार छह महिनोंके अष्टम भागमें एक मिला देने पर उत्पन्न हुई समय- संख्यासे भाजित अतीत कालका अनन्तवां भाग कहा है वह अशुद्ध प्रतीत होता है । मेरी राय में अतीत कालको छह माह आठ समय से भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसको ६०८ से गुणा करनेपर उत्पन्न हुई राशिका अनन्तवां भाग गुणकार होना चाहिये ! ( नेमीचंदजी वकील, सहारनपुर, पत्र २४-११-४१ ) समाधान - उक्त शंका में शंकाकारकी दृष्टि उस प्रचलित मान्यता पर है जिसके अनुसार प्रत्येक छह माह आठ समयमें ६०८ जीव मोक्ष जाते हैं । किन्तु धवला में उक्त स्थलपर दिये गये अल्पबहुत्वमें उक्त पाठ द्वारा उसकी सिद्धि नहीं होती, जब तक कि उस पाठको विशेषरूप से परिवर्तित न किया जाय । उक्त स्थलका अर्थ करते समय हमारी भी दृष्टि इस बातपर थी । किन्तु उपलब्ध पाठ वैसा होने तथा मूडबिद्रीकी ताड़पत्रीय प्रतियोंके मिलानसे भी उस पाठमें कोई परिवर्तन प्राप्त न होनेसे हम उस पाठको बदलने या मूलको छोड़कर अर्थ करने में असमर्थ रहे । यथार्थतः उक्त पाठसे आगे जो सिद्धों का गुणकार हमने ' रूपशत पृथक्त्व ' ग्रहण कर लिया था वह उपर्युक्त दृष्टि ही केवल एक प्रतिके आधार पर किया था । किन्तु दो प्रतियों में उसके स्थानपर 'रूपदशपृथक्त्व ' पाठ था, और मूडबिद्रीके प्रति- मिलान से भी इसी पाठकी पुष्टि हुई है । अतः इससे वह संदर्भ और भी शंकास्पद और विचारणीय हो गया है । अतएव जब तक कोई स्पष्ट प्रमाण इस सम्बन्धका न मिल जावे तब तक उस सम्बन्धमें निर्णयात्मक कुछ नहीं कहा जा सकता ।
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( २० )
१२ शंका – यहां सोलह
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पुस्तक ३, पृ. ३५
१३ शंका-" रज्जुके अर्धच्छेद उत्तरोत्तर एक एक द्वीप और एक एक समुद्र में पड़ते हैं, किन्तु लवणसमुद्रमें दो अर्धच्छेद पड़ेंगे ।" यह बात समझमें नहीं आती । जब धातकी - खंडमें एक अर्धच्छेद पड़ेगा, और लवणसमुद्र उसका आधा है, तब उसमें दो अर्धच्छेद कैसे पड़ जायगे ! ( नेमीचंदजी वकील, सहारनपुर, पत्र २३-११-४१.) समाधान- उपर्युक्त शंकाका समाधान रज्जुके अर्धच्छेदों की व्यवस्थाको स्पष्टतः समझ लेनेसे सहज ही हो जाता है । समस्त तिर्यग्लोक एक रज्जुप्रमाण है । अतः रज्जुको प्रथम वार आधा करने से प्रथम अर्धच्छेद जम्बूद्वीप के मध्य में मेरुपर पड़ा । दूसरी बार जब हम रज्जुको आधा करेंगे तो यह दूसरा अर्धच्छेद स्वयंभूरमणद्वपिकी परिधिसे कुछ आगे चलकर स्वयंभूरमणसमुद्र में पड़ेगा, क्योंकि, उक्त समुद्रका विस्तार भीतर के समस्त द्वीप - समुद्रोंके सम्मिलित विस्तारसे कुछ अधिक है । इसी प्रकार रज्जुको तीसरी वार आधा करनेपर तीसरा अर्धच्छेद स्वयंभूरमणद्वीपमें उसकी प्रारम्भिक सीमासे कुछ और विशेष आगे चलकर पड़ेगा । इस प्रकार रज्जु उत्तरोत्तर छोटा होता जावेगा और उत्तरोत्तर अर्धच्छेद प्रत्येक द्वीप - समुद्र में पड़ते जायेंगे, किन्तु उनका स्थान
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