Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१२४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ५, १९४. उक्कस्सेण संखेज्जसमयं ॥ १९४ ॥
एदे संखेजसमया कम्हि होंति ? कवाडे चडण-ओयरणकिरियावावददंड-पदरपज्जायपरिणदसंखेज्जकेवलीहि संखेज्जसमयपंतीए द्विदेहि अधिउत्तेहि ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ ॥ १९५ ॥
एसो कम्हि होदि ? कवाडगदकेवलिम्हि चडणोदरणकिरियावावददंड-पदरपज्जयपरिणदकेवलीहितो आगदम्हि । बहुआ समया किण्ण होंति ? ण, कवाडम्हि एगसमयं मोत्तूण बहुसमयमच्छणाभावा । कधमेक्कस्सेव जहण्णुक्कस्सववएसो ? ण एस दोसो, कणिट्ठो वि जेट्ठो वि एसो चेव मम पुत्तो त्ति लोगे ववहारुवलंभा।
औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगिकेवली जिनोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय है ॥ १९४॥
शंका-ये संख्यात समय किसमें होते हैं ?
समाधान-कपाटसमुद्धातकी आरोहण और अवतरणरूप क्रियामें लगे हुए क्रमशः दंडसमुद्धात और प्रतरसमुद्धातरूप पर्यायसे परिणत संख्यात समयोंकी पंक्ति में स्थित, ऐसे संख्यात केवलियोंके द्वारा अधिकृत अवस्थामें उक्त संख्यात समय पाये जाते हैं।
एक जीवकी अपेक्षा औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगिकेवली जिनोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ॥ १९५॥
शंका-यह एक समय कहां पर होता है ?
समाधान- आरोहण और अवतरणरूप क्रियामें व्यापृत, ऐसे दंडसमुद्धात और प्रतरसमुद्धातरूप पर्यायसे क्रमशः परिणत हो उक्त समुद्धात केवली अवस्थासे आये हुए कपाटसमुद्धातगत केवलीके यह एक समय पाया जाता है।
शंका–उक्त प्रकारके जीवोंके बहुत समय क्यों नहीं पाये जाते हैं ?
समाधान नहीं, क्योंकि, कपाटसमुद्धातमें एक समयको छोड़कर बहुत समय तक रहनेका अभाव है।
शंका-तो फिर एक ही समयके जघन्य और उत्कृष्टका व्यपदेश कैसे किया ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, कनिष्ठ भी और ज्येष्ठ भी 'यही हमारा पुत्र है' इस प्रकारका लोकमें व्यवहार पाया जाता है, इसलिए एकमें भी जघन्य और उत्कृष्टका व्यपदेश हो सकता है।
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