Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुत्तं ॥ २४९ ॥
कुदो ? सम्मामिच्छादिट्ठिस्स असंजदसम्मादिट्ठिस्स संजदासंजदस्स संजदस्स वा मिच्छतं गंतूण सव्वजहण्णद्धमच्छिय गुणंतरं गदस्स अंतोमुहुत्तुवलंभा ।
उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियङ्कं ॥ २४२ ॥ एदस्सुदाहरणं - एक्को परिभमिदत्थी - पुरिसवेदट्ठिदिगो वुंसयवेदं पडिवज्जिय तमच्छतो आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तपोग्गलपरियट्टाणि परिभमिय अण्णवेदं गदो । सासणसम्मादिट्ठी ओघं ॥ २४३ ॥ सम्मामिच्छादिट्ठी ओघं ॥ २४४ ॥ दाणि दो वित्ताणि सुगमाणि । असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ २४५ ॥
४४२ ]
एक जीवकी अपेक्षा नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टियोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २४१ ॥
क्योंकि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, या असंयतसम्यग्दृष्टि या संयतासंयत, अथवा संयंत जीवके मिथ्यात्वको प्राप्त होकर और वहां पर सर्व जघन्य काल रह करके अन्य गुणस्थानको प्राप्त होनेवाले जीवके अन्तर्मुहूर्तकाल पाया जाता है ।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अनन्तकालात्मक असंख्यात पुलपरिवर्तनप्रमाण है ॥ २४२ ॥
इसका उदाहरण - जिसने पुरुषवेद और स्त्रीवेदकी स्थितिप्रमाण परिभ्रमण किया है, ऐसा कोई एक जीव नपुंसकवेदको प्राप्त होकर, उसे नहीं छोड़ता हुआ आवलीके असंक्यातवें भागमात्र पुगलपरिवर्तनोंतक परिभ्रमण करके अन्य वेदको प्राप्त हुआ ।
सासादनसम्यग्दृष्टि नपुंसकवेदी जीवोंका काल ओघके समान है || २४३ ॥ सम्यग्मिथ्यादृष्टि नपुंसकवेदी जीवोंका काल ओघके समान है ।। २४४ ॥ ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं । असंयतसम्यग्दृष्टि नपुंसकवेदी जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ २४५ ॥
१ एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १,८.
२ उत्कर्षेणानन्तः कालोऽसंख्येयाः पुद्गलपरिवर्ताः । स. सि. १, ८.
[ १, ५, २४१.
३ सासादनसम्यग्दृष्टयाद्यनिवृत्तिबादरान्तानां सामान्यवत् । स. सि. १, ८.
४ किन्त्वसंयत सम्यग्वष्टेनीनाजीवापेक्षया सर्वः कालः । स. सि. १, ८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org