Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 579
________________ ४६६ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, ५, २९६. कुदो ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुर्त्तमिच्चेएहि तेउ - पम्म लेस्सियसम्मामिच्छादिट्ठीणं तत्तो भेदाभावा । संजदासंजद- पमत्त - अप्पमत्तसंजदा केवचिरं कालादो होंति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ २९६ ॥ सुगममेदं सुतं । एगजीवं पडुच्च जहणेण एगसमयं ।। २९७ ॥ तत्थ तात्र संजदासंजदाणमेगसमयपरूत्रणा कीरदे- एकको मिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी वा वड्ढमाणतेउलेस्सिओ एगसमओ तेउलेस्साए अस्थि त्ति संजमा संजम पडिवण्णो । एगसमयं संजमासंजमं तेउलेस्साए सह दिहं । विदियसमए संजदासंजदो पम्मलेस्सं गदो | एसा लेस्सापरावती ( १ ) | अथवा एक्को संजदासंजदो हायमाणपम्मलेस्सिओ पम्मलेस्सद्धाए खीणाए एगसमयं संजमासंजमगुणो अस्थि ति तेउलेस्सिओ जादो | तेउलेस्साए सह संजमासंजमो एगसमयं दिडो । विदियसमए तीए लेस्साए सह क्योंकि, नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातवां भागप्रमाण है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इस प्रकार से तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों का ओघप्ररूपणासे कोई भेद नहीं है । उक्त दोनों लेश्यावाले संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ।। २९६ ॥ यह सूत्र सुगम है । एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल एक समय है ।। २९७ ॥ इनमें से पहले संयतासंयतोंके लेश्यासम्बन्धी एक समयकी प्ररूपणा की जाती हैवर्धमान तेजोलेश्यावाला एक मिथ्यादृष्टि अथवा असंयतसम्यग्दृष्टि जीव तेजोलेश्या के कालमें एक समय अवशेष रह जाने पर संयमासंयमको प्राप्त हुआ । एक समय संयमासंयम तेजोलेश्याके साथ दृष्टिगोचर हुआ। दूसरे समय वह संयतासंयत पद्मलेश्याको प्राप्त हो गया । यह लेश्या परिवर्तनसम्बन्धी एक समयकी प्ररूपणा है (१) । अथवा, हायमान पद्मलेश्यावाला एक संयतासंयत पद्मलेश्याके कालके क्षीण हो जाने पर एक समय संयमासंयम गुणस्थानका अवशेष रहने पर तेजोलेश्यावाला हो गया । तेजोलेश्या के साथ संयमासंयम एक समय दृष्ट २ प्रतिषु मिच्छादिट्ठीणं ' इति पाठः । ३ संयतासंयत प्रमत्ताप्रमत्तानां नानाजीवापेक्षया सर्वः कालः । स. सि. १, ८. ४ एकजीवं प्रति जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, ८. १ प्रतिषु ' अंतोमुहुचो मुहुत-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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