Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४५० ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ५, २६५.
उदाहरणं - एक्को मिच्छादिट्ठी सत्तमाए पुढवीए उववज्जिय छ पज्जतीओ समानिय विभंगणाणी जादो । अप्पणो आउट्ठिदिमणुपालिय कालं काऊण णिग्गयस्स हूं विभंगणाणं, अपज्जतद्धाए तस्स विरोहा । एवमंतो मुहुत्तूण तेत्तीस सागरोवमाणि विभंगणाणस्स उक्कस्सकालो होदि ।
सास सम्मादिट्टी ओघं ॥ २६५ ॥
णाणाजीव पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण सगरासीदो असंखेज्जगुणो, एगजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण छ आवलियाओ, इच्चेपण ओघादो भेदाभावादो ।
आभिणिबोहियणाणि-सुदणाणि ओधिणाणी असंजदसम्मादिट्ठपहुडि जाव खीणकसायवीदरागछदुमत्था त्ति ओघं ॥ २६६ ॥
कुदो ? णाणेगजीवजहण्णुक्कस्सकालेहि एदेसि ओघादो विसेसाभावा । णवरि ओधिणाणि संजदासंजदेगजीवुक्कस्सकालम्हि अस्थि विसेसो । तं जहा- एक्को अट्ठावीस
उदाहरण - एक मिथ्यादृष्टि जीव सातवीं पृथिवी में उत्पन्न होकर और छहों पर्याप्तियोंको सम्पन्न करके विभंगज्ञानी हुआ । अपनी आयुस्थितिको परिपालन कर और मरण करके निकला । तब उसका विभंगज्ञान नष्ट हो गया, क्योंकि, अपर्याप्तकालमें विभंगज्ञान के होनेका विरोध है । इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम विभंगज्ञानका उत्कृष्ट काल होता है ।
विभंगज्ञानी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है ।। २६५ ॥
क्योंकि, नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य काल एक समय, उत्कृष्ट काल अपनी राशि से असंख्यातगुणा, तथा एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छह आवलिप्रमाण, इस प्रकार ओघ काल से कोई भेद नहीं है ।
आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक जीवोंका काल ओघके समान है ।। २६६ ।।
क्योंकि, नाना और एक जीवसम्बन्धी जघन्य और उत्कृष्ट कालकी अपेक्षा इन सूत्रोक्त जीवोंके काल में ओघसे कोई विशेषता नहीं है । केवल, अवधिज्ञानी संयतासंयत गुणस्थानसम्बन्धी एक जीवके उत्कृष्ट कालमें विशेषता है । वह इस प्रकार है- मोहकर्म की
१ सासादनसम्यग्दृष्टेः सामान्योक्तः कालः । स. सि. १,८.
२ आमिनि बोधिक श्रुतावधिमनः पर्यय केवलज्ञानिनां सामान्योक्तः कालः । स. सि. १,८. ३ प्रतिषु ' अस्थि चि विसेसा ' इति पाठः ।
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