Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१५२ ]
छक्खंडागमे जीवाणं
[१, ५, २७०. सामण्णसंजमे अवलंबिदे विसेसाणुवलद्धीदो ।
सामाइय-च्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदेसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अणियट्टि त्ति ओघं ॥ २७० ॥
कुदो ? पमत्तापमत्ताणं णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा, एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगो समओ, उकस्सेण अंतोमुहुत्तं । दोण्हमुवसामगाणं जहण्णेण णाणेगजीवं पडुच्च एगो समओ, उकस्सेण अंतोमुहुत्तं, दोण्हं खवगाणं णाणेगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तमिच्चेएण ओघादो भेदाभावा ।
परिहारसुद्धिसंजदेसु पमत्त-अप्पमत्तसंजदा ओघं ।। २७१ ।।
कुदो ? णाणाजीवं पडुच्च सम्बद्धा, एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ, अंतोमुहुत्तमिच्चेदेहि विसेसाभावा ।
सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदेसु सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदा उवसमा खवा ओघं ॥ २७२ ॥
कुदो ? सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदाणमुभयस्थ संजमभेदाभावा ।
क्योंकि, संयमसामान्यके अवलंबन करने पर ओघके कालसे कोई भेद नहीं पाया जाता।
सामायिक और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण तकके जीवोंका काल ओघके समान है ॥ २७० ॥
क्योंकि, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। आठवें और नवें गुणस्थानवर्ती दोनों उपशामकोंका नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है, तथा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। आठवें और नवे गुणस्थानवर्ती दोनों क्षपकोंका नाना जीव और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, इस प्रकार ओघके कालसे कोई भेद नहीं है।
परिहारविशुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतोंका काल ओघके समान है ॥२७१ ॥
क्योंकि, नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल, एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय और अन्तर्मुहूर्त है, इस प्रकार ओघके कालसे कोई विशेषता नहीं है।
___ सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयतोंमें सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयत उपशामक और क्षपकोंका काल ओघके समान है ॥ २७२ ॥
फ्योंकि, सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयतोंके दोनों श्रेणियों में संयमके भेदका अभाव है।
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