Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१३८ - हक्खंडागमे जीवहाणं
[ १, ५, २३०. सासणसम्मादिट्ठी ओघं ॥ २३० ॥
णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण रासीदो असंखेज्जगुणो, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो; एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्तेण छ आवलियाओ, इच्चेएण ओघादो विसेसाभावा ओघमिदि वुत्तं ।
सम्मामिच्छादिट्ठी ओघं ॥ २३१ ॥
कुदो ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण सगरासीदो असंखेजगुणो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो; एगजीवं पडुच्च जहण्णुकस्सेण अंतोमुहत्तं, इच्चेदेण ओघादो भेदाभावा ।
असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सम्वद्धा॥ २३२ ॥
कुदो ? इत्थिवेदम्हि असंजदसम्मादिट्ठिविरहिदकालाणुवलंभा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ २३३ ॥
स्त्रीवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है ॥ २३० ॥
माना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय, उत्कर्षसे अपनी राशिसे असंख्यातगुणा पल्योपमका असंख्यातवां भाग, एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे छह आवलीप्रमाण काल है, इस प्रकार ओघके कालसे कोई विशेषता नहीं है, अतएव ओघ यह पद सूत्रमें कहा।
स्त्रीवेदी सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका काल ओघके समान है ॥ २३१ ॥
क्योंकि, नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तमुहूर्त, और उत्कृष्ट काल अपनी राशिसे असंख्यातगुणित पल्योपमके असंख्यातवें भाग है; तथा एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, इस प्रकार ओघके कालसे कोई भेद नहीं है।
स्त्रीवेदियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ २३२ ॥
.. क्योंकि, स्त्रीवेदियों में असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंसे विरहित कोई काल नहीं पाया जाता है।
एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २३३ ॥ १ सासादनसम्यम्हष्ट पानिवृत्तिबादरान्तानां सामाग्योक्तः कालः | स. सि. १, ८.
किंतु असंयतसम्यग्दष्टे नाजीवापेक्षया सर्वः कालः। स. सि. १, ८. १ एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १,८.
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