Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ५, २२२० एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २२२ ॥ सुगममेदं सुत्तं । उक्कस्सेण वे समयं ॥ २२३ ॥
कुदो ? एदेसिं सुहुमेइंदिएसु उप्पत्तीए अभावा, वड्डि-हाणिकमेण द्विदलोगंते उप्पत्तीए अभावादो च।
सजोगिकेवली केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णण तिण्णि समयं ॥ २२४ ॥
___तं जहा- सत्तट्ठ जणा वा सजोगिणो समगं कवाडं गदा, पदर-लोगपूरणं गंतूण भूओ पदरं गंतूण तिण्णि समयं कम्मइयकायजोगिणो होदूण कवाडं गदा ।
उकस्सेण संखेज्जसमयं ॥ २२५ ॥ कुदो ? तिण्णि समइयं कंडयं काऊण संखेज्जकंडयाणमुवलंभा। एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण तिणि समयं ॥ २२६ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल एक समय है ॥ २२२ ॥ यह सूत्र सुगम है। एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल दो समय है ।। २२३ ॥
क्योंकि, इन सासादन या असंयतगुणस्थानवी जीवोंकी सूक्ष्म एकेन्द्रियों में उत्पत्तिका अभाव है। तथा वृद्धि और हानिके क्रमसे विद्यमान लोकके अन्तमें भी उनकी उत्पत्तिका अभाव है।
कार्मणकाययोगी सयोगिकेवली कितने समय तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय होते हैं ॥ २२४ ॥
जैसे-- सात अथवा आठ सयोगिजिन एक साथ ही कपाटसमुद्धातको प्राप्त हुए, और प्रतर तथा लोकपूरणसमुद्धातको प्राप्त होकर पुनः प्रतरसमुद्धातको प्राप्त हो, तीन समय तक कार्मणकाययोगी रह करके कपाटसमुद्धातको प्राप्त हुए।
कार्मणकाययोगी सयोगिजिनोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल संख्यात समय है ॥ २२५॥
क्योंकि, तीन समयवाले कांडकको करके उनके संख्यात कांडक पाये जाते हैं।
एक जीवकी अपेक्षा कार्मणकाययोगी सयोगिजिनोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल श्रीन समय है ॥ २२६ ॥
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