Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, २२१. ]
कालानुगमे कायजोगिकालपरूवणं
[ ४३५
तिरिच्छेण दक्खिणं तिण्णि रज्जुमेतं गंतूण तदो साद्धदसरज्जूणि अधो कंडुज्जुवं गंतूण तदो संमुहं चदुरज्जुमेतं आगंतूण कोणदिसाठिदलोग परंतसु हुम वा उकाइएस उपजमाणस्स' तिष्णि विग्गहा होंति ।
सासणसम्मादिट्टी असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २२० ॥
तं जधा - सासणसम्मादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी एगविग्गहं कादूणुप्पण्णपढमसमए एगसमओ कम्मइय कायजोगेण लब्भदि ।
उक्कस्से आवलियाए असंखेज्जदिभागो ॥ २२२ ॥
तं जधासास सम्मादिट्ठि असं जदसम्मादिडिणो दोण्णि विग्गहं काढूण बद्धाउवसेणुपज्जिय दोणि समए अच्छिय ओरालियमिस्सं वेडव्वियमिस्सं वा गदा । तस्समए चैत्र अण् कम्मइयकायजोगिणो जादा । एवमेगं कंडयं काढूण एरिसाणि' आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तं कंडयाणि होंति । एदाणं सलागाहि दोण्णि समए गुणिदे आवलियाए असंखेज्जभागमेत्तो कम्मइयकायजोगस्स उक्कस्सकालो होदि ।
सम्बन्धी लोकके पर्यन्त भागले तिरछे दक्षिणकी ओर तीन राजुप्रमाण जाकर पुनः साढ़े दश राजु नीचे की ओर वाणके समान सीधी गति से जाकर पश्चात् सामने की ओर चार राजुप्रमाण आकर कोणवर्ती दिशामें स्थित लोकके अन्तवर्ती सूक्ष्म वायुकायिकों में समुत्पन्न होनेवाले जीवके तीन विग्रह होते हैं ।
कार्मणकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय होते हैं ॥ २२० ॥
जैसे - कोई सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव एक विग्रह करके उत्पन्न होने के प्रथम समय में एक समय कार्मणकाययोगके साथ पाया जाता है ।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है || २२१ ॥
जैसे -- पूर्व पर्यायको छोड़नेके पश्चात् कितने ही सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जी बांधी हुई आयुके वशसे उत्पन्न होकर विग्रहगति में दो विग्रह करके, दो समय रद्द कर, पुनः औदारिक मिश्रकाययोगको अथवा वैक्रियिकमिश्रकाययोगको प्राप्त हुए । उसी समय में ही दूसरे भी जीव कार्मणकाययोगी हुए । इस प्रकार इसे एक कांडक करके, इसी प्रकार के अन्य अन्य आवलीके असंख्यातवें भागमात्र कांडक होते हैं । इन कांडकों की शलाकाओं से दोनों समयोंको गुणा करने पर आवलीका असंख्यातवां भागमात्र कार्मणकाययोगका उत्कृष्ट काल होता है ।
१ अकं प्रत्योः ' कादंयाए समुप्पज्जमाणस्स ; आ प्रतौ काइयाएसं उप्पज्जमाणस्स ' इति पाठः । २ प्रतिषु 'एरिसाणे ' इति पाठः ।
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