Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, २१८.] कालाणुगमे कायजोगिकालपरूवणं
[४३३ एदाहि सलागाहि आहारमिस्सकायजोगद्धं गुणिदे आहारमिस्सकायजोगस्स उकस्सकालो अंतोमुहुत्तमेत्तो होदि ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ २१५॥
तं जधा- एको पमत्तसंजदो पुव्वमणेगवारमुट्ठाविदआहारसरीरो आहारमिस्सकायजोगी जादो, सव्वल हुमंतोमुहुत्तेण पज्जत्तिं गदो । लद्धो जहण्णकालो।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २१६ ॥
तं जधा- एक्को पमत्तसंजदो अदिट्ठमग्गो आहारमिस्सो जादो । सव्वचिरेण अंतोमुहुत्तेण जहण्णकालादो संखेज्जगुणेण पज्जत्तिं गदो।
कम्मइयकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ २१७ ॥
कुदो ? विग्गहगदीए वट्टमाणजीवाणं सव्वद्धासु विरहाभावादो । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २१८ ॥
चाहिए । पुनः इन शलाकाओंसे आहारकमिश्रकाययोगके कालको गुणा करने पर आहारकमिथकाययोगका अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उत्कृष्ट काल होता है।
___ एक जीवकी अपेक्षा आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २१५॥
जैसे- पूर्वमें जिसने अनेक वार आहारकशरीरको उत्पन्न किया है ऐसा कोई एक प्रमत्तसंयत जीव आहारकमिश्रकाययोगी हुआ और सबसे लघु अन्तर्मुहूर्तसे पर्याप्तकपनेको प्राप्त हुआ । इस प्रकारसे जघन्य काल प्राप्त हो गया।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २१६ ॥
जैसे- नहीं देखा है मार्गको जिसने ऐसा कोई एक प्रमत्तसंयत जीव आहारकमिश्रकाययोगी हुआ, और जघन्य कालसे संख्यातगुणे सबसे बड़े अन्तर्मुहूर्तद्वारा पर्याप्तियोंकी पूर्णताको प्राप्त हुआ।
कार्मणकाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ २१७॥
क्योंकि, सभी कालों में विग्रहगतिमें विद्यमान जीवोंके विरहका अभाव है। एक जीवक्री अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल एक समय है ।। २१८ ॥
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