Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४३४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ५, २१९. तं जहा- एगो मिच्छादिट्ठी विग्गहगदिणामकम्मवसेण एगविग्गहे मारणतियं गदो । पुणो अंतोमुहुत्तेण छिण्णाउओ होदूण बद्धाउवसेण उप्पण्णपढमसमए कम्मइयकायजोगी जादो । विदियसमए ओरालियमिस्सं वेउब्वियमिस्सं वा गदो । लद्धो एगसमओ ।
उक्कस्सेण तिणि समया ।। २१९ ॥
तं जधा- एगो सुहुमेइंदियो अहो सुहुमवाउकाइएसु तिण्णि विग्गहं मारणंतियं गदो । अंतोमुहुत्तेण छिण्णाउओ होदूण उप्पण्णपढमसमयप्पहुडि तिसु विग्गहेसु तिण्णि समय कम्मइयजोगी होदूण चउत्थसमए ओरालियमिस्सं गदो। सुहुमेइंदियाणं सुहुमेइंदिएसु उप्पज्जमाणाणं तिणि विग्गहा होति त्ति णियमो कधं णव्वदे ? णत्थि एत्थ णियमो, किंतु संभवं पडुच्च सुहुमेइंदियग्गहणं कदं । बादरेइंदिया सुहमेइंदिया तसकाया वा सुहुमेइंदिएसु उववज्जमाणा तिण्णि विग्गहे करेंति त्ति एस णियमो घेत्तव्यो, आइरियपरंपरागदत्तादो। तिण्णिविग्गहाकरणदिसा बुच्चदे- बम्हलोगुदेसे वामदिसालोगपेरंतादो
जैसे- एक मिथ्यादृष्टि जीव, विग्रहगतिनामकर्मके वशसे एक विग्रहवाले मारणान्तिकसमुद्धातको प्राप्त हुआ। पुनः अन्तर्मुहूर्तसे छिन्नायुष्क होकर बांधी हुई आयुके वशसे उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें कार्मणकाययोगी हुआ। पुनः द्वितीय समयमें औदारिकमिश्रकाययोगको, अथवा वैक्रियिकमिश्रकाययोगको प्राप्त हुआ। इस प्रकारसे एक समय उपलब्ध हुआ।
एक जीवकी अपेक्षा कार्मणकाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल तीन समय है ॥ २१९॥
जैसे-एक सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव अधस्तन सूक्ष्मवायुकायिकोंमें तीन विग्रहवाले मारणान्तिकसमुद्धातको प्राप्त हुआ। पुनः अन्तर्मुहूर्तसे छिन्नायुष्क होकर उत्पन्न होनेके प्रथम समयसे लगाकर तीन विग्रहोंमें तीन समय तक कार्मणकाययोगी होकर चौथे समयमें औदारिकमिश्रकाययोगको प्राप्त हो गया।
शंका-सूक्ष्म एकेन्द्रियों में उत्पन्न होनेवाले सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके तीन विग्रह होते हैं, यह नियम कैसे जाना ?
समाधान- यद्यपि इस विषयमें कोई नियम नहीं है, तो भी संभावनाकी अपेक्षा यहां पर सूक्ष्म एकेन्द्रियोंका ग्रहण किया है। अतएव सूक्ष्म एकेन्द्रियों में उत्पन्न होनेवाले बादर एकेन्द्रिय या सूक्ष्म एकेन्द्रिय अथवा त्रसकायिक जीव ही तीन विग्रह करते हैं, यह नियम ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि, यही उपदेश आचार्यपरम्परासे आया हुआ है।
अब तीन विग्रह करनेकी दिशाको कहते हैं- ब्रह्मलोकवर्ती प्रदेशपर वामदिशा
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