Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं तं जधा- मिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिविणो देवा जेरइया वा मण-वचिजोगेसु द्विदा कायजोगिणो जादा । सव्वुक्कस्समतोमुहुत्तमच्छिय अण्णजोगिणो जादा । लद्धमंतोमुहुत्तं ।
सासणसम्मादिट्ठी ओघं ॥ १९९ ॥
णाणाजीवं पड्डुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण छ आवलियाओ, इच्चेदेहि ओघसासणादो भेदाभावा ।
सम्मामिच्छादिट्ठीणं मणजोगिभंगो ॥ २०० ॥
णाणाजीवं पडुच्च जहण्णण एयसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो, एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगो समओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तमिचेएण मणजोगिसम्मामिच्छादिट्ठीहिंतो वेउव्वियकायजोगिसम्मामिच्छादिट्ठीणं विसेसाभावा ।
वेउन्वियमिस्सकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥२०१।।
जैसे- मनोयोग या वचनयोगमें स्थित मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि कोई देव अथवा नारकी जीव वैक्रियिककाययोगी हुए और उसमें सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल रह करके अन्य योगवाले हो गये । इस प्रकारसे उत्कृष्ट कालरूप अन्तर्मुहूर्त प्राप्त हो गया।
वैक्रियिककाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है॥१९९॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय, उत्कर्षसे पल्योपमका असंख्यातवां भाग, तथा एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे छह आवली, इस रूपसे ओघवर्णित सासादनगुणस्थानके कालसे इसमें कोई भेद नहीं है।
वैक्रियिककाययोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका काल मनोयोगियोंके समान है ॥२० ॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय, तथा उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त है। इस प्रकारसे मनोयोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंसे वैक्रियिककाययोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके काल में कोई विशेषता नहीं है।
__ वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवों में मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त काल तक होते हैं ॥२०१॥
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